कहानी कुर्ला की
आम आदमी घबराता बहुत हैं और हमने भी अब तक खुद को आम आदमी ही माना हैं,
खैर लोगो ने हमें सांड, पहाड़, डाइनोसोर और न जाने क्या क्या कह ये जताने की कोशिश की, की हम आम तो हो सकते हैं आदमी नहीं.
पर हमने खुद को आम आदमी मानना नहीं छोड़ा.
खैर बात ये नहीं की हम आदमी हैं की नहीं, बात ये हैं की आम आदमी घबराता हैं की नहीं. तो जनाब आम आदमी घबराता हैं और क्या खूब घबराता हैं, जिससे घबराता हैं उसको उपाधि भी दे देता हैं
"कभी शैतान बना देता हैं
कभी भगवान बना देता हैं"
जी जनाब भगवान भी , बिना डर के इनका भी धंधा नहीं चलता. लोग भगवान भरोसे चलते हैं और ये डर के भरोसे.
खैर ऐसा भी नहीं की आस्था नाम की कोई चीज ही नहीं, पर बहुत हैं जिनकी चाभी डर ही हैं.
भूमिका बहुत बना ली अब असली मुद्दे पे आते हैं , जिसने इस कवि को कहानी लिखने पे मजबूर कर दिया.
ॐ कुर्लाया नमः
(कुर्ला मुंबई में एक स्टेशन हैं जहा लोकल ट्रेने रूकती हैं)
ये किस्सा हैं कुर्ला का,
कुर्ला की लोग इज्जत बड़ी करते हैं, अब ऐसा भी नहीं इसकी वजह प्यार मोहब्बत हो. इसकी बस एक ही वजह हैं और वो हैं खौफ, कुर्ला का खौफ. अच्छे खासे मुस्कुराते चेहरों से हंसी गायब कर देता हैं ये खौफ.
और खौफ हो भी क्यूँ ना यहाँ की गई लोगो की एक गलती भी बहुत भारी पड़ती हैं, कुछ के स्टेशन छुट जाते हैं और कुछ की ट्रेन. सुनने में मामूली लग रहा हैं, जरा इस महानगर में आ के देखिये यहाँ जीना कितना मुश्किल हैं, 2 मिनट की देरी आपकी नौकरी खा सकती हैं.
ऐसा नहीं हैं की कुर्ला ने हमारी नौकरी खा ली हो, अभी तो हमे दो दिन ही हुए हैं
'नौकरी करते हुए'
(हम यहाँ बजाते हुए लिखना चाहते थे, पर ये अतिशयोक्ति अलंकार हो जायेगा यहाँ नौकरिया लोगो की बजा रही हो भला हमरी क्या मजाल की हम नौकरी की बजा सके )
इस वाक्य का ये भी अर्थ निकलता हैं की, हम अब बेरोजगार नहीं रहे.
बात ये हैं की कुर्ला को हम गाहे बगाहे सालो से देखते रहे है, पर उसके रहमोकरम पे पहली बार हुए, तब जा के हमने जनता का दर्द और खौफ जाना.
अब तक हम को लग रहा था की
गिरने का मुकाबला सिर्फ रुपये और कांग्रेस के बिच हो रहा हैं, पर यहाँ तो हम और आप भी दौड़ में शामिल हैं.
आज की ही बात ले लीजिये, कुर्ला का खौफ ऐसा की इंसान अपनी इंसानियत तक भूल जाता हैं.
हुआ यूँ की लोकल ट्रेन में एक बुजुर्ग सज्जन बेहोश हो के गिर पड़े. गिर तो पड़े पर गिरे भी कब जब ट्रेन कुर्ला दरबार में पहुँच चुकी थी, अब तक आप जाने ही गए होंगे कुर्ला में कोई रुकना नहीं चाहता , बस माथा टिकाया और भागे, खौफ ही कुछ ऐसा हैं कुर्ला का.
भीड़ उस बूढ़े आदमी पे चढ़ी जा रही थी, बस ये जान लीजिये खाल से इंसान लग रहे थे अन्दर जानवर ही छुपा था.
थोडा सा खौफ क्या देखा उनका जानवार बाहर ही निकल आया.
कुछ लोग अब भी बचे थे, जो खाल के साथ साथ अन्दर से भी इंसान थे.
उन्होंने उस सज्जन को अपनी तरफ खीचा पानी पिलाया और ये भरोसा भी दिलाया की,
खौफ के आगे कुछ दिल अब भी धडकते हैं, डरते नहीं हैं
इंसान हैं इंसान को इंसान ही समझते हैं.
उस सज्जन को तो कुछ इंसानों ने बचा लिया, पर कल को आप भीड़ में गिरे तो हो सकता हैं आस पास कोई इंसान ही मौजूद न हो.
"कभी शैतान के खौफ में
कभी भगवान के खौफ में
किसी की बलि न दीजिये
खौफ से निकलिए
इंसान ही रहे जानवर न बने"
: शशिप्रकाश सैनी
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हो सकता है आपके आस पास इंसान मौजूद न हो.... कितनी गंभीर बात... इसलिए हमें ही इंसान बनना चाहिए..
ReplyDeleteजी बिलकुल
Deleteदुनिया से उम्मीद करने से पहले खुद में बदलाव लाना जरुरी हैं
SP bhai you are awesome.
ReplyDeleteधन्यवाद विकास जी
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