आठ से आठ की सीफ्ट
आठ से आठ की सीफ्ट में
भावनाएं उलझी
कविताओं पे छाई उदासी हैं
कलम मेरी प्यासी हैं
अब समझें हैं सन्डे त्यौहार क्यों लगे
हफ्ते दर हफ्ते हर बार क्यों लगे
मशीन से इन्सान हो जाते हैं
मन से मुस्काते हैं
कलम अब चलेगी
अपनी सुनेगी
भावनाएं जीएगी
कविता करेगी
इसे पहले की
फिर मशीन हो जाए
मनडे आए
घड़ी की सुईया बन
टिक टिक गाए
ठन के अपनी करे
गोते ताल में
हवाओं में उड़े
मन की मर्जी ने थिरकें
खूबसूरत अभिव्यक्ति, बेजोड़ रचना।
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