मैं पानी बनू



बहाता पानी, पानी मैं, पानी बनू
अखियाँ झर से बरसे
या मेघा ही बरसे
बहाता पानी, पानी मैं, पानी बनू

अखियन में जो रुक जाऊ
तो मन को होती पीड़ा
और जमीं पे जो ठहरा
सड़ जाऊ दुर्गन्ध बनू
जो जाऊ कीड़ा कीड़ा
रुक जाऊ तो रुक जाऊ
जन जन को देता पीड़ा
बहाता पानी पानी, मै पानी बनू

चलना मेरी किस्मत
रुकना क्यों रम जाऊ
एक हिमाला छुता मैं
दूजा सागर लाऊ
बह बह के मैं नदी बनू
तालो क्यों रह जाऊ
रुकना क्यों रम जाऊ

मुझको न पानी का पोखर
न कुआं, न नलके से होकर
नालो क्यों बह जाऊ
कंकड ना पट पाऊ
नदी बनू मैं बड़ी वेग की
पत्थर काटू चूर करूँ
पानी पानी, मै पानी बनू

ठंड करे तो बर्फ हुई
गर्माहट करती पानी हैं
ज्यादा दी जो आग मुझे
भाप, बादल मेरी कहानी हैं

झरनें से झर झर
या फुटू, किसी सोते से
कीमत कैसे आकी जाए
डूबकी कर, कर गोते से

खेतों और खलिहानों की
सोभा हूँ पुराणों की
पूजों तो देवत्व मुझी में
न पूजों तो पानी हूँ
पानी पानी, मैं पानी बनू


: शशिप्रकाश सैनी

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