सत्ता रावण होने को
धुधु कर के जलता हैं
जब पुण्य पाप पे चलता हैं
लंका सोने की हो ले
या हीरे का तू महल बना
जो दीवार लहू से तर हैं
उसका हीरा कंकड हैं
काली जी ये रात
रात जब रात रहेगी
गिद्ध छतों पे बैठे
धरा पे नाग डसे
झूठ करेगा राज जहाँ
धोखे का सिंहासन होगा
जब पाप घड़ा ये भर जाए
बरसे झर झर से
संयम अब खोने को हैं
सब पार हुआ हैं सर से
पाप यहाँ पे पार हुआ
बरसे हैं झर झर से
ये रावण न दस सर वाला
लड़ना हैं सौ सर से
खा के यहाँ कुंडली मारे
डरता ना ये डर से
जन जन जब हो ज्वालाएँ
बाण चले घर घर से
पाप घड़ा ये फूटेगा
जनता की ठोकर से
जो अब तक हैं मूक बधिर
चौदह में जब आए वो
लौटा दो उसे दर से
मत को अपने हथियार करो
चौदह में सब वार करो
दिल्ली का रावण दहले
कांपे जी थर थर से
जब बाण चले घर घर से
जब सत्ता रावण होने को
जनता जी राम बने
मत मत अपना बर्बाद करे
अब की हुंकार करे
दिल्ली गर लंका होगी
धुधु करके राख करे
: शशिप्रकाश सैनी
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