लालो में जी लाल हुए



लालो में जी लाल हुए
गंग लहर से उपजे थे
काशी के ये लाल हुए
मानी न इन ने जात पात
नीच न कुल न कोई ऊचा है  
एक ही कुल के सब बेटे
सारा जगत समूचा है
त्याग दिया नाम जात का
लालो में जी लाल हुए

जय जवान है जय किसान
नारा ये लाल लगा देता
जो सीमा पे लड़ता महान
तो खेतों में खटता महान
माटी से जो अन्न करे
भय से हो भयभीत नहीं
दुश्मन को वो सन्न करे
दोनों ही महान

रेल हुई दुर्घटनाग्रस्त
नैतिकता पे पद त्यागा
फिर ऐसा मंत्री हुआ नहीं
जिसको कुर्सी ना प्यारी थी
ना आदर्शो की लाचारी थी

देश का दुर्भाग्य रहा
ताशकन्द में देह त्यागा
जहाँ आज है त्राहि त्राहि
संसद में भ्रष्टाचारी तमाम
इस सपूत की चिता जलाने
गाड़ी हुई नीलाम
लालो में जी लाल हुए

अखियाँ तरस गई है बरसों
फिर ना ऐसे लाल हुए


: शशिप्रकाश सैनी 


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