PACH प्रदेश Episode 3




वैद्य के कहें अनुसार एक आदमी हल्दी लेने चला जाता है दूसरा काव्य कुँए कि तरफ भागता है | हल्दी लेने भुलक्कड़ राम गए है और जाते ही हल्दी का नाम भूल जाते है और दुकानदार से बहस होने लगती है |

(किराना दुकान पर का दृश्य)

भुलक्कड़ राम : हमको एक ठो चीज चाहिए

दुकानदार : फल दे दूँ या बीज चाहिए

भुलक्कड़ राम : हम ना बोले वो बोले है

दुकानदार : नाम बताओ तब ले जाओ
बे पईसा के दें दें तुमको
इतने भी हम ना भोले है

भुलक्कड़ राम : ओही जो मरहमपट्टी करते
जख्म लगे तो ओही भरते
जिनके हाथों नेक दुआ है
उनका ही आदेश हुआ है

दुकानदार : सीधे तुम काहे नै बोले
वैद्य बुलाए सामान ले चलो
चाहें तो दुकान ले चलो

भुलक्कड़ राम : दुकान नहीं हमे दवा चाहिए
जख्मी मन को ठंडक दे दे
ऐसी हमको हवा चाहिए

दुकानदार : खेल न खेलों न खिलवाओ
सीधे बोलो क्या चाहिए
जख्मी मानुष तड़प रहा है
उसकी ना हमें आह चाहिए
जल्दी बोलो क्या चाहिए

भुलक्कड़ राम : पेड़ न डाली, पौधा है
रंग से पीला औ शर्मीला
माटी के अंदर छुप रहता
दुनिया कहती जड़ है
जड़ है जड़ है जड़ है
फिर भी देता जीवन है

दुकानदार : देर लगी तुम्हे जल्दी चाहें
सीधे बोलो हल्दी चाहें

(दुकानदार भुलक्कड़ राम को हल्दी देता है और वो वैद्य की ओर चल देता है)

(वही दूसरी ओर काव्य कुँए पर अतुकांत बाल्टी लिए पहुचता है, और पानी काढने की माने कि निकालने की कोशिश करने लगता है, पर उसे सफलता नहीं मिलती नहीं पास के पेड़ पे बैठा तोता बोलता है)

तोता : क्या केवल श्रम से काम चलेगा
काव्य का पानी काव्य भी लेगा

इस पर अतुकांत परेशान हो कर इधर उधर देखने लगता है

अतुकांत : किसने अपना मुह ये खोला
हम पूछे है कौन ये बोला

तोता : बात मानो बात तो समझों
बेमतलब का राग न छेड़ों
काव्य का कुआँ यूँ ना देगा
काव्य का पानी काव्य भी लेगा

इस पर अतुकांत बोलता है

अतुकांत : सच में आया नया नया
मैं पच में आया नया नया
काव्य नहीं मुझे आता है
बस सुनना मुझकों भाता है

तोता : ये तो विपदा आन पड़ी
काव्य कलश न भर पाओगे
तुम खाली हाथों घर जाओगे

अतुकांत : बड़ी कठिन है बड़ी समस्या
मेरा निज स्वार्थ नहीं है
पंचायत ने भेजा मुझकों
जख्मी एक परदेशी आया

तोता : बड़ी कठिन है बड़ी समस्या
जीवन पथ आसान नहीं है
चुप रहना समाधान नहीं है
बोलो कोशिश करो तुम थोड़ा
बकैयाँ बकैयाँ सभी चले है
पल भर में यहाँ कौन हैं दौड़ा

(तोते की प्रेरणा से अतुकांत कोशिश करता है)

अतुकांत : दुखियों का तू दुख हर
चल जल मेरे पात्र में भर

(इस पर थोड़ा सा काव्य पानी बाल्टी में आ जाता है)

तोता : अच्छा है पर, पर और हिलाओ
शब्दों को थोड़ा खेल खिलाओ

अतुकांत : पच का वासी कविता गाए
सुख दुख अपने शब्द मिलाए
डाली डाली डोल रही हैं
भाव भावना बोल रही है
काव्य यहाँ पर कुआँ है
गहरा है और मिटा जल
चल जल्दी मेरे पात्र में चल

(इस पार अतुकांत की बाल्टी लबालब भर जाती है और वो तेजी से पंचायत की ओर भागता है)

वैद्य को जैसे ही हल्दी और काव्य जल मिलता है, वे यात्री के उपचार में लग जाते है, यात्री के जख्मों पर लेप लगाया गया है और काव्य जल का काढ़ा बना यात्री को पिलाया जाता है | पूरी पंचायत टकटकी लगाए खड़ी ताक रही है, इस पर वैद्य बिगड कर बोलते है |

वैद्य : जहां न एक वचन भी बोलो
जाओ अपने घर को हो लो

तभी भीड़ में से कोई पूछता है
: अपने मन उत्सुकता जागी
धमनी की करताल बताओ
कैसा है ये हाल बताओ

वैद्य : तीन पहर ये सोयेगा
असर दवा का होएगा
अभी नहीं ये बोलेगा
धीरे धीरे जख्म भरेंगे
तब जाके ये डोलेगा

(धीरे धीरे पच वासी अपने घरों को जाने लगते है और वैद्य मरीज संग अपनी कुटिया कि ओर हो लेता है)

पच प्रदेश में सूरज ढलने लगा है, अरे आप कहाँ चल दिये आज का खेला खत्म नहीं हुआ है अभी रुक जाइए, अभी थोड़ा और घुमा दूँ आपको |

यह देख रहे है ये पच प्रदेश का बाघ है अरे डर क्यूँ रहे, माफ़ी चाहूँगा टाइपो हो गया ‘घ’ वाला नहीं ये ‘ग’ वाला बाग है, देखिए बच्चे अभी तक खेल रहे है, नाम नहीं पूछेंगे बच्चों से चलिए मैं ही पूछ लेता हूँ |

सूत्रधार : मुन्ना तुम्हारा नाम क्या है, किसके घर के हो

(बच्चे सूत्रधार का मुह ताकने लगते है)

अरे मैं भी एक दम ही मुरख हू ये पच बालक है, इन्हें पद्य तो आता है गद्य समझाने में अभी इनको समय लेगा, रुकिए पद्य में पूछता हूँ |

सूत्रधार : झोला भर के आई है
मेरे पास मिठाई है
नाम बताओ मीठा पाओ
खाओ या तो घर ले जाओ

इस पर एक बालक बोलता है
: झोला जिसके पास में हो
माँ ने बोला दूर रहो
अनजानो से बोलू ना
मुह अपना मैं खोलू ना

तभी दूसरा बालक बोलता है
: मैं दोहा वो रोला है
ये हरी वो गीतिका
सम विषम घर में सोए
चलना अभी नहीं सिखा

(इस पर दोहा सूत्रधार से सारी मिठाईयां ले कर घर की ओर भागता है और रास्ते में बच्चे आपस में उलझने लगते है)

रोला : माँ से तेरी करूं शिकायात
तुने उससे बात क्योंकि

दोहा : जिस पग चाहूं मैं डोलूँगा
मेरी मर्जी मैं बोलूँगा

रोला : घर चल तू अब खातिर होगी
बेलन झाडूं पड़ेंगे तुझको
तेरी हरकत आखिर होगी

इस पर गीतिका बोलिती है

गीतिका : जाने दो भईया छोडों ना
ऐसे मुख तो मोड़ों ना
आगे से ऐसा नहीं करेगा
लालच मन में नहीं भरेगा

हरी मुह के में पानी आ रहा है

हरी : कड़वा सब कुछ कौवा खाए
मीठा बहना भाई बंधू पाए
आओ हम सब मीठा खाए

इस पर दोहा इतराता है और बोलता है

दोहा : जिसको चाहूं उसको दूँगा
न चाहूं तो ना ही दूँगा

गीतिका भड़क कर बोलती है

गीतिका : रोला भईया सही कहें है
तुम बस डंडे लायक हो
मीठा सब तुम चट कर जाओ
घर जाके फिर झाडूं खाओ

इस पर दोहा दांत निपोरते हुए कहता है

दोहा : ही ही ही ही ही ही
मैं तो मजाक कर रहा था दीदी
ही ही ही ही ही ही
दीदी तुम पेडा ले जाओ
रोला भईया ईमरती खाओ
हरी जलेबी खाएगा
मेरे हिस्से क्या आएगा
मुझकों तो लड्डू भाएगा

हरी जिद करते हुए कहता है

हरी : और नहीं कुछ मैं लूँ
मुझकों चाहें बस लड्डू

इस पर रोला बोलता है

रोला : ऐसे नहीं ऐसे नहीं
काम चलेगा ऐसे नहीं
सम विषम भी पाएंगे
सब अपना हक ले जाएंगे

गीतिका : हर मिष्ठान के टुकड़े होंगे
छह मुह है तो छह में होंगे
सब का हक है एक बराबर
सब बैठे हैं आश लगा कर

(बालक आपस में मिठाई बाँट कर अपेन घर की ओर चल देते है)

क्या हुआ आप नाराज मालूम दे रहे हैं, क्या कहा मैंने बच्चों में झगड़ा लगा दिया, अरे नहीं नहीं ! ये झगड़ा थोड़ी ही था ये तो लड़कपन है और मैं मिठाई न देता तो नाम कैसे पता चलते बच्चों के |
देखिए पच प्रदेश सोने लगा अब इतनी रात गए भूतो की तरह घूमना अच्छा नहीं ना, और कही कोई सचमुच का प्रेत व्रेत मिल गया तो |

क्या कहा मैं फट्टू हूँ ! (गुस्से में) हाँ जी फट्टू हूँ, चलिए ज्यादा शेखी न बघारिये अभी सामने कोई प्रेत पड़ जाए तो सारी बहादुरी उड़न छू हो जाए, शराफत से रहिएगा तो आपको बाकि पच के दर्शन अगेल एपिसोड में कराऊंगा, नहीं तो राम राम हमको कौन सा पैसा मिलता है आपको पच दर्शन करा के, चलता हूँ, शुभरात्रि अंग्रेजी में बोलू तो गुड नाईट, हुह बड़े आए फट्टू बोलने वाले (गुस्से में) |


: शशिप्रकाश सैनी


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