भितरी क हई, भितराय देब


भितरी क हई, भितराय देब


कनवा के पकौड़े, हीरा की चाय, मुस की इस्त्री, ये तीनो मेरे गाँव की खासियत हुआ करती थी, गाँव भितरी (सैदपुर) जिला: गाजीपुर, उ.प्र .


कनवा के पकौड़े तो हम कभी चख नहीं पाए हाँ उसका बेटा भी कोई कम अच्छे पकौड़े नहीं बनाता था, जिसका लुत्फ़ हमने बहुत उठाया पर पापा कहते हैं कनवा के पकौडों के सामने ये कही नहीं ठहरते हमारे नसीब में तो ये भी था, अगर कभी हमने शादी की तो हमारे बच्चों के नसीब में ये भी नहीं होगा, कनवा का बेटा पईसा कमाने बम्बई चला गया करीब चार साल पहले, अब वहां साइकिल रिपेयर की दुकान है.


हीरा की चाय! जरुर पी पर बस एक बार यही कोई डेढ़ साल पहले BHU में MBA के दौरान, अगले सप्ताहांत में जब फिर गाँव गए तो पाता चला हीरा ने आत्महत्या कर ली, अब हमारे गाँव की एक और खासियत चली गई.


अब जो बचा है, वो है मुस की इस्त्री, मुस कि इस्त्री किए हुए कपड़े एक धुलाई बाद भी बिलकुल इस्त्री किए हुए लगते है, बुढा तो मुस भी हो गया है न जाने कब चला जाए कह नहीं सकते, जैसे मुन्ने भाई चले गए उन्ही के स्कूल में हम गधइया गोल टक पढ़े थे, मुन्ने भाई का आम का बगीचा हुआ करता था, दसहरी आम के उस बगीचे के तो कच्चे आम भी मीठे लगते थे.


गधइया गोल से सीधे माँ पापा हमे बम्बई ले आए, अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए. मैं अपना गाँव कभी छोड़ना नहीं चाहता था, पर दिल्ली हमारे गांवों पे मेहरबान नहीं है, न जाने रोज कितने ही रिंकू अपना गाँव छोड़ते शिक्षा के लिए, रोजी के लिए, कभी तो वो दिन आए जब रिंकू को अपना गाँव न छोड़ना पड़े.


गाँव छोड़ने में बड़ी तकलीफ होती है, कोई रिंकू से पूछे कितनी तकलीफ हुई थी उसे अपना गाँव छोड़ने में, आम का पेड़ छुट गया, करुन्दा और नीम्बू का भी साथ नहीं ले जा पाया, गधइया गोल में था तो कापी के पन्ने फाड़ पेड़ के नीचे बिछा के खेतों में सो जाता था, ये इस्टाइल था बंक मारे का गाँव में, क्या कोई शहर ये दे सकता है. एक रुपया ले के लालता की बर्फ गाड़ी के पीछे भागना, जो बात लालता की बर्फ में थी वो किसी चोकोबार में कहा, छत पे सोते तारे गिनना, यहाँ तो खिड़की से तारे देखे जमाना बीत गया.


वो तो खैर मनाइए की शशि का दाखिला MBA, BHU में हो गया, इसी बहाने रिंकू भी हर सप्ताहांत पे आपने गाँव हो आता था, बीते दो साल भरपूर जिया रिंकू अपने गाँव भितरी में. बचपन का वो डाइलाग भी याद हो आया, जब जौनपुर अपने ननिहाल जाता था रिंकू तो उसके गाँव के नाम पे लोग चिढाते थे उसे, तब पूरे ताव से बोलता था "भितरी क हई, भितराय देब" .


शशि बहुत चालक है वो कभी गाँव नहीं लौटेगा और रिंकू हमेशा गाँव जाना चाहता है.

: शशिप्रकाश सैनी

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