एक अंतहीन राह



पैरों में हवाई चप्पलें, पैरागान की नहीं महंगी वाली बाप के पैसे की, खुद की औकात एक चप्पल खरीदने भर की नहीं फिर भी आंखों ने ख्वाब पाल लिए। सड़क की उस पटरी पर एक शख्स कुत्ता टहलाता हुआ, सड़क की इस पटरी पर ख्वाब इसे टहलाते हुआ, उस तरफ इंसान मालिक है, इस तरफ ख्वाब मालिक है। इंसान कुत्ते को हकीकत खिलाता हुआ, हकीकत माने रोटी और बोटी , जो मिले तो हकीकत नहीं तो ख्वाब । सड़क की इस पटरी पर ख्वाब इंसान को ख्वाब खिलाता हुआ, ख्वाब जो हकीकत नहीं क्योंकि ख्वाब तो ख्वाब ही होता है ना, देखते सभी हैं उस पर निकलते कम ही हैं, ख्वाब ! ख्वाब रोटी और बोटी नहीं जुटा सकते क्योंकी ख्वाब, ख्वाब की ही खुराक दे सकते हैं और वहीं दे रहें हैं, पर कब तक यह हवाई चप्पलों वाला ख्वाब पर जीएगा ।


समाने एक फ्लाईओवर है, गाड़ियाँ ऊपर से जाती है और रेल नीचे से , सड़क पर छोटी बड़ी मझौली हर तरह की गाड़ियाँ जाती है, पर पटरियों पर सिर्फ लंबी रेलगाड़ियां, और जब रेलगाड़ी गुजरती है तो फ्लाईओवर कांपता है, फ्लाईओवर की सड़क कांपती है, और सड़क पर चलती छोटी मोटी मझौली गाड़ियां भी। सड़क हर वक्त भरी रहती है ट्राफिक जाम हो जाता है, रेल की पटरियों पर ट्राफिक नहीं देखा कभी रेल तो इक्की दुक्की ही गुजरती है ट्राफिक होगा भी कैसे। पर रेल बनना बड़ा मुश्किल है लोहे के पहीए लगते हैं, गाड़ियों की तरह नहीं कि एक कील चुभी और हवा निकल गई, लोहे के चक्के है हवा नहीं हौसले पर चलते है, ख्वाबों का इंजन लगता है खिचने के लिए, कहानी दर कहानी डिब्बे जुड़ते जाते हैं और रले लंबी हो जाती है, शुरुआत ख्वाब करते हैं पर राह में जुटाए अनुभव के डब्बे रेल को पूरा करते हैं।


एक अंतहीन राह
राह अंतहीन हो तो ही अच्छा, क्योंकि हवाई चप्पल वाले को ख्वाब चलाते हैं और ख्वाबों की फितरत है कि वो पूरा होते ही नया ख्वाब बो देता है, जो ख्वाब पर ख्वाब गढ़ेगा उसे राह अंतहीन ही चाहिए ।


: शशिप्रकाश सैनी


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