The होली Day-१ ( The Tiger Series Episode-2)




हमारा टाइगर कमरे में नहीं सोता, जब उसे पहली बार अजगर मकान दिखाने लाया था तभी टाइगर ने कह दिया “मैं कमरों में नहीं सोता मुझे खुली जगह पसंद है, मेरे लिए हौल में बेड डाली जाए मैं हौल में रहूँगा, हाँ चाहो तो मेरा बेड पर्दों से घेर सकते हो, ताकि आते जाते लोग मुझे देख डर न जाए” | हमारे हौल में कोई पंखा न था, पर टाइगर का जलवा यहाँ भी चल गया, टाइगर ने अजगर की दुम पे पैर रख आज पंखा भी लगवा दिया, बड़े अचरज की बात है अजगर टाइगर की हर बात मानता है, कही टाइगर अकेले में अजगर को धमकाता तो नहीं “सामान दो नहीं तो सम्मान ले लूँगा”, खैर ये तो रहस्य है |


बात आज की करते है, आज का दिन बड़ा अजीब जा रहा था, अभी सुबह को ही लीजिए हम सब सो रहें थे, टाइगर भी सो रहा था, टाइगर का अलग से जिक्र करना पड़ता है क्युकी वो टाइगर है वो हम में नहीं आता, टाइगर के सामने हम शब्द बड़ा छोटा मालूम देता है | खैर मुद्दे पे आते है हमारी आँख सबसे पहले खुली सब गहरी नींद में थे, हम सोचने के लिए सोचालय की तरफ बड़े ही थे कि हमें कुछ सुनाई दिया “खड़ी बा सोमो हमार गोरिया आके बईठ जा” उस तरफ नजर फेरी तो देखा पर्दों के बीच में लकडबघ्घा बैठा हुआ था, लकडबघ्घा टाइगर के फोन से इंटरनेट का लुफ्त उठा रहा था, लकडबघ्घा को छेड़ने की हमारी हिम्मत न हुई सो हम सोचालय चले गए और सोचने लगे आखिर लकडबघ्घा फ़्लैट में आया तो आया कैसे सब तो सो रहें है, लकडबघ्घा है जात का बामन कही कोई जादू मंतर तो नहीं किया ये |


जब हम सोचालय से सोच के निकले तो देखा लकडबघ्घा चीता के पास बैठा हुआ है और चीता के मोबाइल से अंतरंग रिश्ते बनाने की कोशिश कर रहा है, अब हमसे रहा न गया हमने टाइगर को जगाया और सारा हाल कह डाला | टाइगर गुर्राते हुए लकडबघ्घा पे झपटा और दोबोच लिया लकडबघ्घा छटपटाते हुए कह रहा था “अरे भईया टाइगर हमका छोड़ दो दुबारा ऐसी गलती नहीं होगी, ऊ हमारा नेट पैक खत्म हो गवा रहा और हमको बड़ी जोरो की तलब लगी रही फेसबुकियाने की” हमने पूछा अंदर कैसे गुसे दरवाजा तो बंद रहा , ऊ बोला “ ऊ चीता ही पीता है ना ऊ छत पे गए रहें पीने वासते तभी हम गुस आए और चुपके से टाइगर भईया का मोबाइल ले के पर्दे की आड़ में फेसबुकियाने लगे” हम सोचे ‘हाय राम हम खामखा ही डर रहें थे’ अब थोड़ी हिम्मत मुझ में भी आ गई थी, लकडबघ्घा का कान पकड़ उन्हें बाहर कर आए, ई जरुरी भी रहा टाइगर का कौनो भरोसा नहीं ना, कब खून खराबा कर दे पता नहीं |


(दो घंटे बाद का दृश्य)


टाइगर अभी अभी रूम में दाखिल हुआ है साथ में बुढा बाघ भी है दोनों सर से पैर तक तरबतर है, दोनों की आंखे लाल है गुस्से के मारे, थोड़ी देर बाद चीता से हमे मालूम हुआ दोंनो गए थे चाय पीने और कुछ असमाजिक तत्वों ने इन्हें पानी वाले गुब्बारों से मार मार के पानी पानी कर दिया | टाइगर के हाव भाव बता रहें है, बीच बाजार अपनी इज्जत पे पानी फेरने वालो को टाइगर माफ नहीं करेगा, टाइगर ने अभी आपात बैठक बुलाई है, बैठक में टाइगर समेत चीता, भालू और बुढा बाघ है, हमे नहीं बुलाया गया हम ठहरे पक्षी, जात के बाहर के प्राणी सो हम दरवाजे पे कान लगाए सुन रहें है | 


(बैठक के अंदर का दृश्य)


बुढा बाघ : टाइगर बेटा आज तुम्हे गली के लौंडे धोए है यानी भिगाए है, कल कल गली की लौडियां कूटेंगी सोचो क्या इज्जत रहा जाएगी तुम्हारी, उठा के जीना है तो बदला लेना पड़ेगा |

भालू : क्या उठा के जीना है

बुढा बाघ : भो-ड़ी के सर उठा के जीना है, गंदी सोच बंद करो, मुद्दे की बात करो

चीता : काहे भड़का रहें हो टाइगर को, बीयर लाओ दो घुट मारो और सो जाओ

(टाइगर दहाड़ता है)

टाइगर : चुप हो जा साले, हमेशा पीने पिलाने की बात करता है

बुढा बाघ : ई साला बीयर नहीं अपमान का घुट पीने को बोल रहा है, उल्लू के साथ रह रह के समझदारी की बात करने लगा है, बाहर निकालो इसको जात निकाला कर दो

चीता : अरे नाराज क्यों हो रहें हो बाघ काका, हम तो ऐसे ही बोल रहें थे, बदला जरुर लिया जाएगा, कल ही जाके गुब्बारे और पिचकरी ले आते है, ऐसा गुब्बारा मारेंगे कि लोग कहेंगे शकरपुर ब्लाक ए में बाढ़ आ गवा

टाइगर : चुप हो जा कभी बियर कभी बाढ़, दिमाग ठिकाने नहीं है तेरा, अपनी खैर चाहता है तो चुप हो जा

(चीता दुम दबा के निकल लिया बैठक से, इसी बहाने उसको सुट्टा पीने का मौका मिल गया)

बुढा बाघ : वैसे टाइगर बिटवा चीता सही कह रहा था

टाइगर : चुप करो काका तुम भी सठिया गए हो

बुढा बाघ : बात तो सुनो बिटवा, हम असली के बाघ टाइगर तो है नहीं ई तो कहानी में उल्लू ने हमारा नाम राख दिया है, असली में गोल बारूद तो नहीं ना इस्तेमाल कर सकते, हमारा हथियार पिचकारी और गुब्बारा ही है, ओही से हमला किया जाए

भालू : एक दम हे सही बात बोले बाघ काका, इसी बहाने होली भी खेल ली जाएगी, हाँ पर हम बोले देते है हम तो बस लौंडियों को ही गुब्बारा मारेंगे

टाइगर : भो-ड़ी के ठरकी साला, हमरा नाम टाइगर है कौनो तेजपाल नहीं जो ई सब हरकत करे 


(चीता फिर से कमरे में दाखिल होता है)


बुढा बाघ: ऐसा है चीता तुम्हारा सुझाव मान लिया गया है, अब कि होली डे पे वही होगा, जाओ गुब्बारे और पिचकारी किन लाओ

चीता : ऐसा है काका बिना नकद नारायण के कौनो सेवा उपलब्ध नहीं है हमरे इहा

टाइगर : चुप कर साले, हमारी इज्जत से बड़ा पईसा कब से हो गवा ? कितना पईसा चाहिए 


( टाइगर ताव में नोटों का बंडल चीता कि तरफ फेकता है)


(असल में यह भी एक कारण है कि टाइगर को टाइगर बुलाया जाता है, टाइगर को घर से पईसा मिलता है और हम लोग की उम्र घर से पईसा मांगने की निकल गई है, हम बजट नाम के प्राणी के प्रकोप में रहते है और ऊ मन माफिक जीता है एक दम टाइगर की तरह)


( चीता नोटों का बंडल ले बाजार की तरफ निकल जाता है)


To be CONTD…..


: शशिप्रकाश सैनी


//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
यहाँ Free ebook में उपलब्ध 

Comments

Popular posts from this blog

इंसान रहने दो, वोटो में न गिनो

रानी घमंडी