बनारस और हम


मेरा परिवार मुंबई में बसा हुआ है पर मूलतः हम है बनारस के पास गाजीपुर से, ठीक ठीक लगा लो तो बनारस भी कह सकते है, पर बनारस कभी कैंट रेलवेस्टेशन से ज्यादा देखा नहीं. पिछली सर्दियों में माँ को बोला कि ये आखिरी साल है BHU में फिर MBA खत्म हुआ तो पता नहीं किस्मत कहा ले जाए, MBA के बहाने ही सही आप लोग चले आओ आपको बनारस घुमा देता हूँ.


पापा को घूमने के लिए मनाना कोई आसान खेल नहीं है, एक मोर्चे से तो कभी बात ही नहीं बनती, इस के लिए हमें दो मोर्चे खोलने पड़े एक माँ कि तरफ से, दूसरा बहन की तरफ से. माँ तो माँ है मान गई पर बहन तो बहल सकती नहीं उसे कुछ सोलिड लालच देना पड़ा, कुछ ख्वाब दिखाएँ और बनारस के ख्वाब बेचने में राँझना फिल्म हमारे बहुत काम आई. ख्वाबों ने असर दिखाना शुरू किया बहना ने भी अपना मोर्चा खोल दिया, पापा कितने भी सख्त क्यूँ न हो हैं तो आदमी ही और जब दो औरते मोर्चा खोल दें तो बेचारा आदमी भी क्या करे रहना तो घर में ही है, पापा को भी मनना पड़ा और दिसम्बर का दौरा तय हो गया.


जिस दिन मेरा परिवार बनारस लैंड किया उस दिन सैमसंग के कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए आने के आसार बनने लगे, हमारे सारे सैर सपाटे के प्लान धरे के धरे रह जाते, वो तो भला हो हमारी बदकिस्मती का हमारा पुराना रिकार्ड बना रहा हाथ तो आया मुह न लगाया सैमसंग कभी आई ही नहीं हमारे कॉलेज में, इसके लिए हम अपनी प्लेसमेंट कमिटी के तहे दिल से शुक्रगुजार हैं. अब आते है मुद्दे पर, शाम को जब हमारा परिवार बनारस आया तो उस दिन का भी हमने सदुपयोग कर लिया, बनारस धार्मिक नगरी है जाहिर सी बात हैं शुरुआत मंदिरों से ही होनी है. तो शाम को हम चल दिए संकट मोचन और दुर्गा कुंड ये पूजा खत्म हुई तो बारी आई पेट पूजा की, सो हम जा पहुचें “Crystal Bowl” शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेन्ट है ये वैसे भी बनारस धर्म की नगरी है खैर धर्म और अधर्म में बस का फर्क है उसपे हम ज्यादा जोर नहीं डालेंगे, बस यह जान लीजिए बनारस अपने शाकाहारी खाने के लिए मशहूर है, यहाँ मांसाहार में मजा नहीं आएगा.



खैर रात बीती दिन आया, दिन का ये विचार था कि अस्सी घाट से नाव की सैर करते हुए ललिता घाट उतरेंगे और काशी विश्वनाथ दरबार के दर्शन किए जाएंगे, सुबह सुबह जब कोहरा छटा भी नहीं था तब दो साइकिल रिक्शा और चार मुसाफिर अस्सी की ओर हो लिए. अस्सी पे पहुचें तो नाव के लिए मोलतोल होने लगा, वो आठ हम बोले तीन, वो बोला कोई आपको तीन में घुमाने को तैयार हो जाए तो हम फ्री में घुमा देंगे, हम बोले अइसा हैं गुरु टूरिस्ट होंगे तुम्हारे पिताजी, हम यही BHU में पढ़ते है और हैं गाजीपुरिया का समझे, इस पर वो मान गया सोचा बोहनी हो कैसे भी और हम चल पड़े. अगर हमारे मुह से कही बम्बई शब्द निकल पड़ता तो लंबा कटते, पर वो भी था बनारसी हमें बुढा मल्लाह थमा दिया.



गंगा पे नाव धीरे धीरे आगे बढ़ी जा रही है और कोहरा भी छटने लगा है नजारा मन मोह ले ऐसा, कई नावें आसपास तैर रही है ऊपर से ये सिबेरियन परिंदों ने गंगा में करतब दिखा दिखा के पूरा माहोल मनोरम बना दिया है, नदी के बीचोंबीच कुछ छोटी छोटी नावें नमकीन बेच रही है, अरे आप गलत समझ रहे है ये चखना वाला नमकीन नहीं ये नमकीन हमारे और आप के लिए बिलकुल नहीं, यह तो इन परदेसी परिंदों के लिए है चार दाने नदी में उछालिए और पूरा झुण्ड उमड़ पड़ता है. तभी हमने देखा माँ और बहन के पे चेहरों पे मुस्कान थिरक रही है और ये क्या पापा भी मंद मंद मुस्का रहे है, यह बनारस यात्रा तो यही सफल हो गई पापा को इतना खुश कम ही देखा है. 



बहन नमकीन खरीदने की जिद करने लगी है कह रही है मैं भी परिंदों को नमकीन खिलाउंगी, एक तरह से हमारे घर में हमारी बहन ही हाई कामन है, उसने कहा है तो होगा नमकीन खरीद ली गई, क्या ! क्या कह रहे हैं आप आपको नमकीन नहीं पाता, अरे वही जो नूडल जैसी छोटी छोटी होती है बेसन और न जाने किस किस समान से बनती है, क्या अभी भी नहीं समझ में आया. हम तो भूल ही गए थे की आप अंग्रेज के बच्चे है नमकीन माने की “Snacks”. नाव चेत सिंह घाट के सामने से गुजरती है और मैं माँ को बता हूँ कि ये मेरा सबसे पसंदीदा घाट है मैं यहाँ घंटों बैठा रहता हूँ, तभी पापा बोलते हैं इसी लिए तो तुम्हें भेजा है बनारस पढ़ने थोड़ी ना भेजा है घुमो खाओ आवारागर्दी करो माँ पापा को शांत करती है सबके सामने नहीं कहो लड़का बड़ा हो गया है, हम मन में सोचने लगते है यार ये भी अजीब मुसीबत है घुमाएँ भी हम और सुने भी हम.



नाव धीरे धीरे गंगा की लहरों पे तैरते हुए आगे बढ़ रही है, तभी माँ चिल्लाती है ये तो पचगंगा घाट है, ये तो पचगंगा घाट है, मैंने कहा हाँ पचगंगा घाट ही है तो क्या हुआ. माँ के चहरे पे बच्चों सी खुशी तैरने लगी है, माँ कुछ कह नहीं रही मुस्काएं जा रही है. तभी बहन बोलती है कही पिछला जन्म तो नहीं याद आ गया, इस पर माँ कहती है चुप कर यही बड़ी माँ का घर था, तुम्हारी बड़ी नानी का घर पांच साल की उम्र में एक बार यहाँ आई हूँ और अचानक आज सब याद आ गया ये सीढ़ियों से चढ़ते ही दाहिंने हाथ पे है घर. माँ ने उस दिन बहुत कुछ बताया सब यहाँ नहीं लिख सकता कहानी लंबी हो जायेगी. नाव ललिता घाट पे रूकती है हमें यहीं उतारना है, हम विश्वनाथ मंदिर की ओर हो लेते है, यहाँ महादेव के दर्शन के अलावा बस ये हुआ की जो पैसे हमने नाव में बचाएं थे वो पंडो ने ऐठ लिए.




शाम को मैं सबको ले कर गदौलियाँ पहुँचता हूँ, अभी गंगा आरती में समय है तो थोड़ा चाट खा आए, बनारास आए और बनारसी चाट न खाएँ ये भी भला बात कोई हुई. रास्ते में सड़क किनारे हमे मलइयो बड़ी मासूमियत से घूरता दिखा, वैसे तो दिली इच्छा थी की हम माँ और बहन को ठठेरी बाजार की रबड़ी और मलइयो खिलाएं पर न हमारे पास समय था, न हौसला कि ठठेरी की गलियों में पापा को दौडाएं और साल भर की गालियाँ आज ही खा ले, हमने मन को समझाया क्या हुआ थोड़ा standard कम है पर है तो मलइयो ही, यहीं खिला देते हैं और हमने चार कुल्हड़ मलइयो का फरमान सुना दिया. यहाँ चौकने की बारी हमारी थी, बहन और माँ को मलइयो ठीक ठीक जान पड़ा पर पापा को बहुत पसंद आया उनके लिए एक और कुल्हड़ पेश किया गया. आज बनारस यात्रा दूसरी बार सफल हो गई, पापा को मीठा जरा भी पसंद नहीं है और उन्होंने दो कुल्हड़ मलइयो खा लिया, मन में एक आवाज फूटी यो यो आई लव यूँ मलइयो









हमारा अगला पाडव था नारियल बाजार में दिना चाट भंडार यहाँ हमने फुल्की बोले तो पानीपुरी, पपड़ी चाट और टमाटर चाट खाया, चाट तो सबको इतनी पसंद आई की चाट चाट के चाट गए, पर बाहर निकलते ही हम पर माँ ने बम फोड़ दिया माँ कहने लगीं ये गली कुचे की दुकाने तुझे कैसे पता, दिन भर यही करता है ना तू घूम घूम कर खाता रहता है और बस फोटो खिचता है तभी बहन ने ये याद दिलाया और कविता भी तो लिखता रहता है घाट पे बैठ के माँ बोलीं हाँ वो भी, पढ़ता लिखता तो होगा नहीं, देती हूँ तुझे पैसे अब घूम और खा. हम बहन को घूरने लगे और रुआंसा सा मुह ले के आगे बढ़े, आज नारियल बाजार के सारे नारियल हमारे ही सर पड़ने थे क्या.



दश्वासमेध घाट पे गंगा आरती चल रही हैं, हमारा परिवार भी घाट की सीढ़ियों से बैठ आरती के रंग में रंगा जा रहा है, यहाँ तक पापा भी आरती की धुन पर ताली बजाने लगे हैं जबकि पापा धार्मिक आदमी जरा भी नहीं, सब माहौल का असर है, दूसरा दिन यहीं समाप्त होता है.



आज हम सारनाथ की ओर निकले है, मौसम अपना रंग दिखाने लगा है, ठण्ड कड़ाके की है और कोहरा भी घना है, मैं सारनाथ पहले भी जा चूका हूँ और अपने अनुभव से बता दूँ सारनाथ बार बार घूमने की जगह नहीं है हमारा तो एक बार से मन भर गया, लेकिन आज इस मौसम ने सारनाथ को सारनाथ कहा छोड़ा इसे तो पूरा हिल स्टेसन बना दिया है. यहाँ हमने स्तूप देखा अशोक स्तम्भ देखा और एक छोटा चिडियाँघर भी है यहाँ चिडियाँ कम है और पर्यटक ज्यादा है, बहन की जिद्द पे वो भी देखा, पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में घुसे तो अतीत का एक हिस्सा जिया, अशोक चिन्ह को साक्षात देखा, यहाँ कैमरा लाना माना था सो संग्रहालय का एक भी चित्र नहीं दिखा पाएंगे.



धम्म स्तूप परिसर में वर्मा जी से मिले, वर्मा जी पुरातत्व विभाग में काम करते है, किसी ज़माने में हमारे पैतृक गाँव में तैनात थे, हमारा गाँव भीतरी गाजीपुर में है ये भी एक एतिहासिक जगह है यहाँ स्कंदगुप्त और हुनो के बीच युद्ध लड़ा गया था, वर्मा जी यहाँ बारह साल रहे और पापा से मित्रता भी हो गई. जब पापा को याद आया वर्मा जी आजकल सारनाथ में तैनात है तो पापा ने वर्मा जी को ढूढं निकला, ये भी खूब रही हम गए थे सारनाथ घूमने और दो पुराने दोस्तों को मिला आए, हम लोगों उस दिन भोजन भी साथ किया. आते समय पाप अशोक चिन्ह की लकड़ी की प्रतिकृति लेना चाहा रहे थे और दुकानदार हजार के नीचे जा ही नहीं रहा था, तभी शून्य में से वर्मा जी प्रकट हुए और हमने तीन सौ में दो प्रतिकृति खरीदी, हमको पहले से पता था यहाँ पैसा बचा है तो कही लूटेगा तो जरूर पैसा चलायमान जो हैं, इसी वहज से मैंने और बहन ने यह तय किया की कही और लूटे इससे अच्छा है मुर्गा दबाया जाए और हम ही इस नकदी का भोग लगा ले. हमने पहले ही कहा था हमारी बहन हाई कमान है उसको साथ में ले लिया, तो लाइफ झिंगालाला और हुआ भी वैसा, रात का खाना शानदार था.




आखिरी दिन और आखिरी पड़ाव था रामनगर का काशी नरेश का किला, अरे वही पिंक वाला गेट जिसके सामने धनुष राँझना में नाचता है याद आया, किला दिखाया उसका संग्रहालय भी देखा, दुनिया भर की पुरानी बंदूके तलवार न जाने क्या क्या देखा, अपन कवि आदमी हमारी रूचि कविता और कलम से ज्यादा कभी हुई नहीं, ये सब चीजे हमे क्या लुभाती बस देखा और निकल लिए. रामनगर जाने का हमारा असल मकसद था रामनगर की मशहूर रबड़ीदार लस्सी का भोग लगाना, भोग लगाया और लगवाया भी और जिसका हमारे घर में रिवाज हैं, कुछ अच्छा खिला दो लोगों को तो रिंकू को गाली पड़नी ही है, रिंकू नहीं समझे अरे रिंकू माने हम ऊ अंग्रेजी में कहते हैं ना निक नेम. उसके बाद हम आ गए BHU कैम्पस में अगर आपको पेड़ पौधों से प्यार है तो आपको हमारा BHU बहुत अच्छा लगेगा यहाँ मोर भी घूमते रहते है. माँ हमेशा कहती थी अपना कॉलेज नहीं दिखाता कभी तू आज मैंने पूरी युनिवर्सिटी दिखा दी, कुल मिला के सबके चहेरे मुस्कुरा रहे थे, माँ जाते जाते ये वादा ले गई कि अब मैं जहाँ भी रहूँगा वहाँ भी घुमाना होगा, हमे खुशी खुशी वादा किया. इनदिनों MBA की नौकरी छोड़ के दिल्ली लेखक बनने चले आये है, आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं पर माँ को किया वादा नहीं भूले है जिस दिन जिंदगी में थोड़ा ठहराव आएगा खींच लायेंगे घर को मुंबई से दिल्ली दर्शन के लिए.


: शशिप्रकाश सैनी




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Comments

  1. जीवन के यही छोटे-मोटे, अपनो के साथ बिताये पल ताउम्र रुह की दीवार पे चस्पा रहते हैं और यदा कदा इन लम्हों की जुगाली चेहरे पे मुस्कान बिखेरती रहती है...बेहद सुंदर।।।

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