पल्लवी


माथे का पसीना है कि बढ़ता ही जा रहा है, चिंता की लकीरें छिपाएँ नहीं छिप रही, आंखें भीड़ में किसी को तलाश रही है, कनाट प्लेस में रवि पहले कभी इतना चिंतित नहीं दिखा, यहाँ आते ही उसका चेहरा खिल जाता था, जाने आज क्या हो गया है।


कारण, कारण खुद रवि बताएगा, इस मुस्कुराहट का, "यहाँ आते ही दिन भर का दर्द काफूर हो जाता है, बॅास की गाली, महीने का टारगेट यहाँ तक पे चेक का मातम भूल जाता हूँ, नहीं नहीं, आप गलत समझ रहे हैं, कनाट प्लेस में मेरा कोई निजी प्यार नहीं जो देख मन मुस्काता हो, मैं तो यहाँ खूबसूरत चेहरे देखना आता हूँ, भावओं से भरे हुए चेहरे, हर चेहरे की अपनी कहानी है, मुझे यहाँ अब लोग नहीं दिखते दिखती है तो बस कहानियाँ ।


अब आप पूछेंगे किसी की कहानी बीना बात करें कैसे जान लेता हूँ, ये आंखें सब बता देती है, आंखें बस दुनिया देखने के काम नहीं आती, जितना ये आपको दुनिया से जोड़ती है उतना ही ये दुनिया को आप से जोड़ती है, नहीं समझें खिड़की हैं ये आंखें बस इतना है कि आप को तो सारी दुनिया आसानी से दिख जाती है, पर आपके अंदर की दुनिया देखने के लिए उस बाहरी दुनिया को आपके स्तर तक आना होता है, नहीं समझें हर कोई आपके भाव नहीं पढ़ सकता, सतही दुनिया तो आपकी खिड़की में झांक भी नहीं सकती, आपके भाव वहीं पढ़ पाएगा जो खुद उन भावों से वासता रखता हो ।


इसी जगह मैंने सैकड़ों कहानियाँ पढ़ीं, कुछ दुख भरी, कुछ खुशी की, कुछ नटखट तो कुछ भयानक, पर जो कहानी आज से तीन महीने पहले देखी या यूँ कहूं पढ़ीं फिर मुझे यहाँ कोई दुसरी कहानी आकर्षित नहीं करती, यही कोई २०-२२ की उम्र होगी, क्या नाम, आप नाम जनना चाहते है, नाम हमें कहाँ पता चलना हम तो सिर्फ कहानियाँ पढ़ते है, नाम खुद ही रखना। पड़ता है, पहले तो सोचा इनका नाम रखा जाए अनामिका फिर याद आया हमारे एक मित्र ने किसी का नाम अनामिका रख रखा है कहीं भविष्य में टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो जाए इस लिए हमने अनामिका से दूरी बनाते हुए इनका नाम पल्लवी रख दिया, अब कारण न पूछिएगा ।


पल्लवी के चेहरे पर हमने हर वो भाव देखा जिसकी खुद की जिंदगी में कमी रही, शायद यही कारण रहा हो कि मुझे यह कहानी बड़ी दिलचस्प, बड़ी आकर्षण बांधने वाली लगी, जिंदगी कुछ यूँ हो गई थी कि हमें संडे काटने लगा था क्योंकि वो संडे को C.P नहीं आती थी, पर हम फिर भी यहाँ धमक पड़ते थे, कि कहीं वो भूलें भटके ही सही आ न जाए।


पल्लवी पिछले एक हफ्ते से नहीं दिखी मुझे, अब आप खुद सोचिए मेरा क्या हाल होगा, असल में मुझे उसकी आदत पड़ गई है, वो मुझे नशे की तरह लग गई है जिसे मैं चाह कर भी नहीं छोड़ सकता, पल्लवी की कहानी पढ़ते पढ़ते मैं उसकी कहानी जीने लगा था, पिछले कुछ दिनों से पल्लवी नहीं दिखी है तो मुझे लगने लगा है मेरा जीवन मेरी कहानी बेमतलब है उसके बिना, मैं आप से बाद में बात करूँगा अभी मुझे पूरा C.P छानना है जाने कहाँ छिपी हो पल्लवी ।


: शशिप्रकाश सैनी


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