मंदबुद्धि कवि की कहानी
बचपन की बात हैं
पांचवी से कविताओं का साथ हैं
छठी में मित्र ने कहा था
कलम जल्दी जल्दी चला
तेरे नाम में भी लगेगा
डॉक्टर फला फला
जब सौ कविताएँ होंगी पूरी
डॉक्टरेट की ख़तम हो जाएगी दुरी
बाल मन वो नादान
हम भी बुद्धू
जो वो कहता गया, हम मानते गए
भावनाओं की कढ़ाई में तेल खौलाते रहे
कविताओं की जलेबीयां छानते गए
उसने कहा था, बहोत पैसा हैं
कवियों की जेब, खजाना कुबेर जैसा हैं
लालची हम तब भी थे
सिक्को की खनक में खींचे
हम चल पड़े पीछे पीछे
आठवीं तक होस आ गया था
न डॉक्टरेट हैं, न पैसा हैं
ये तो सब भ्रम हैं
खयाली ख्वाब जैसा हैं
पर तब तक
हम पड़ गए थे प्यार में
शब्दों और कविताओं के दुलार में
खुद को जाहिरा करना
रास आने लगा था
ये बाल मन कवि हो चला था
फिर लिखते गए लिखते गए
ढेर हो गई कविता
जिंदगी जब भी अंधेर हुई
सवेर हो गई कविता
: शशिप्रकाश सैनी
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ढेर हो गई कविता
ReplyDeleteजिंदगी जब भी अंधेर हुई
सवेर हो गई कविता
बढ़िया...
अनु
धन्यवाद अनु जी
Deleteजिंदगी जब भी अंधेर हुई
ReplyDeleteसवेर हो गई कविता
wahh! bohot hi sunder. Dil ko chu gai aapki panktiyaan.
Keep writing dear :)
my best wishes to u!
धन्यवाद सिमरन जी
Deleteढेर हो गई कविता
ReplyDeleteजिंदगी जब भी अंधेर हुई
सवेर हो गई कविता
वाह क्या बात कही है ...
बेहतरीन भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति,,
संगीता जी बधाई,,,
धन्यवाद संजय जी
ReplyDeleteये संगीता कौन है
मै तो शशिप्रकाश हूँ
ReplyDeleteबेहतरीन भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..........शशिप्रकाश जी बधाई,,,
typing mistake Shashiprakash ji
ReplyDeleteजी कोई बात नहीं
Deleteधन्यवाद यशवंत जी
ReplyDeleteढेर हो गई कविता
ReplyDeleteजिंदगी जब भी अंधेर हुई
सवेर हो गई कविता
.. समय समय की बात होती है ...
बहुत बढ़िया रचना .
धन्यवाद कविता जी
Deleteबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति......
ReplyDeleteधन्यवाद सुषमा जी
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