बचपन चिड़िया नटखट है
कच्ची माटी का घड़ा था
वक़्त से पहले भरा
जिंदगी सौगात थी जो
उसको क्या तू कर गया
छोटे छोटे हाथ खिलौने
छोटी सी वो गुडिया थी
बस्ता भोझ सही था उस पे
रिश्ता भोझ चढ़ाया क्यों
कलम जिन हाथो में शोभा
चूल्हा चौका क्यों थोपा
थोपा है क्या क्या तूने
बचपन भट्टी में झोखा
ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार से आती
सही वक़्त पे चहेरा दिखाती
तब तक चलने का हौसला हो जाता
यूँ अंगारों पे न चलाती
पैर जले हैं जले हैं हाथ उसके
अपनों ने छला हैं
क्या क्या हुआ हैं साथ उसके
अपने ही बच्चो को कोई जलाता हैं भला
ज़िन्दगी का घिनौना चेहरा दिखा डरता हैं भला
बचपन न खा जाइये किसीका
वो नन्हे पैर स्कूल चलने के लिए
उन्हें ससुराल की सीढ़िया न चढ़ाइए
अपने ही बच्चो के जीवन में व्यथा न लाइए
बाल विवाह कुप्रथा ये प्रथा हटाइए
पिंजरे में न क़ैद करे
न पंख किसी के तोड़े
बचपन चिड़िया नटखट हैं
आजाद इसे जी छोड़े
The need of the hour is extreme measures against those supporting this idiotic tradition...
ReplyDeleteif only people understood the ill-effects..
its still a long way to go..
जी सही बात कठोर कदम जरुरी है ये कुप्रथा मिटने के लिए
Deleteपिंजरे में न क़ैद करे
ReplyDeleteन पंख किसी के तोड़े
बचपन चिड़िया नटखट है
आजाद इसे जी छोड़े
सच है ...सार्थक प्रस्तुति ...
धन्यवाद अनुपमा जी
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