जिंदगी मैंने खूब चखी
जिंदगी मैंने खूब चखी
कभी कुल्हड़ में रबड़ी
कभी बनी लस्सी
दिल ने जब भी बडबडाया
पैरों ने साथ निभाया
हम चले अस्सी
जिंदगी मैंने खूब चखी
कभी दोने की चाट
कभी बनी फुलकी
ठंडी बढ़ी तो
मलइयो हुआ ठाठ
बम्बइया जेब पे लगे पूरी हल्की
रातो को जगना चखा
हॉस्टल से लंका भगना चखा
चाय की चुस्की की चाहत बढ़ी
बन से मलाई और मक्खन चखा
शामो सुबह घाट और गलिया
बनारस में क्या नहीं चखा
दोस्तों से मिर्ताबान भरा
रहा
कभी खट्टा कभी तीखा
जब जो किया मन
हमने चखा अपने जी का
हरकते यहाँ क्या क्या न की
जिंदगी मैंने खूब चखी
घर आ गए है
जुबा से स्वाद उतरता नहीं
है
तस्वीरो यादों से मन भरता
नहीं है
बी एच यू बनारस
ये स्वाद अनमोल हो गया
यहाँ आने के लिए
फिर पाने के लिए
दिल तड़पता बारबार
जब मौका मिलेगा चखेंगे
अपनी झोली स्वादों से
भरेंगे
: शशिप्रकाश सैनी
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद राजेंद्र जी
DeleteBeautiful composition full of delicacies :)
ReplyDeleteधन्यवाद क्सिलाया जी
DeleteAti sundar...
ReplyDelete"hostel se lanka bhagna chakha"... Kya line hai.
Behtareen kavita.
धन्यवाद आशीष जी
Deleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
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