बरस बरस के आंख ने बताया कुछ नहीं
बरस बरस के आंख ने बताया कुछ नहीं
दिल रोता रहा उसे समझ आया कुछ नहीं
प्यार प्रेम जब से बाजार के हुए
दाव पे फिर हमने लगाया कुछ नहीं
खनक सिक्को की जिसे अच्छी लगने लगे
कविता भाव गुलदस्ते उन्हें भाया कुछ नहीं
मतलब के रिश्ते है मतलब का है लगाव
मतलब के सिवा उसे नज़र आया कुछ नहीं
वैसे तो कविताएँ "सैनी" की नीरस लगे उन्हें
अज बोलती है बहुत दिन हुए तुमने सुनाया कुछ नहीं
: शशिप्रकाश सैनी
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteati sunder
ReplyDeleteधन्यवाद सिफर
Delete