देश मेरा बाजार हो गया है यूँ
हाथ तिरंगा ले
गर मै जन गण मन करू
भाव देशभक्ति का
या बेचते हो तिरंगा
किस पार्टी से हो
क्या छुपाए अजेंडा
हर नियत पे शक
बिक रही इंसानियत
हाथ मतलब का बढ़ाए
खंजर दूजे में छुपा के
गर मिले मौका कभी
सर ही तेरा काट ले
वो लाशो पे सौदे करे
मंत्री बिके संत्री बिके
कभी एक बोतल दारू पे
कभी आरक्षण की लालसा
कही जाती से तोला गया
कही धर्म पे हम बिक गए
कभी चावल पे
कभी बिके गेहू पे हम
कभी टीवी का लालच
कभी लैपटॉप का झुनझुना
साडी बटे कपडे बटे
हम हर किसी पे बिक गए
बिकते बिकते आज हम
बिकाऊ कितने हो गए
: शशिप्रकाश सैनी
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