मेरे डैडी की जादूगरी
ये ट्रेन जाती है तो कहा जाती है
ये हेलीकाप्टर उड़ता कैसे है
रात में सूरज नहीं दिखता, ऐसा क्यों
बाजार में सामान पे लगता है, पैसा क्यों
ये रास्ता मुड़ता कैसे है
ये बरसात कहा से आती है
ऐसे ही कई सवाल उटपटांग से
निकलते थे मेरी जुबान से
सुबह स्कूल जाते
शाम घर आते
सवालों के कई तीर
छूटते थे मेरी कमान से
डैडी ऐसा क्यों, डैडी वैसा क्यों
डैडी देते, मेरे हर क्यों का जवाब
छोटा रिंकू अड़ जाने पे
किसी की न सुनता
मांगता था, मैं जिद्दी था बड़ा
मेरी हर जिद की पूरी
मेरे डैडी की जादूगरी
अपने अरमानो से धुल हटाई नहीं
शौक तो थे, पर चीजे जुटाई नहीं
मेरी इच्छाओ पे कड़ी धूप न पड़े
कभी मेरे लिए छाता बने
कभी बिस्तर बने
पड़ोसी ने मुह पे किवाड़ मारी थी
क्यों क्योंकि
जब मौका मिले ताकता था
रिंकू उसका टीवी झाकता था
डैडी ने छुट्टियाँ बेचीं
किश्तों में डैडी ले आए रंगीन टीवी
अब मारे किवाड़ किसीकी न हिम्मत हुई
आज भी जब, मैं मांगू भी नहीं
वो देने में देर नहीं करते
मेरी जिंदगी में उजाला है वो
अँधेरे नहीं करते
जानता हूँ नाराज कर आया हूँ
इस संघर्ष ने क्या बना दिया मुझे
अपनों की तकलीफ कारण बना
कभी कभी सोचता हूँ
मैं अपना हूँ या पराया हूँ
अब मैं भी कंधा हो जाऊ
कुछ काम घर के, डैडी के आऊ
बरसात भिगाए तो छाता
ठंडी में रजाई
छोटा रिंकू बड़ा हुआ
अब कंधा हो जाए भाई
: शशिप्रकाश
सैनी
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