गर तुझको साधू होना है
घुमत घुमत मैं जा पंहुचा
चौखम्बा सट्टी के द्वारे
एक खम्बा खड़ा पकड़ के
साधू बोला भग रे लड़के
फोटो मेरी खींच नहीं तू
जो आगे मैं कदम बढ़ता
राह में फिर वो साधू आता
जाने क्या वो नाम बताता
देर लगी चौखम्बा सट्टी
बाबा देता ज्ञान की घुट्टी
क्षणभंगुर संसार है बेटा
मोह लगा के रिश्ता पाला
अंतिम में सब दुख ही देता
नयी जगह पे नए है रिश्ते
नयी हैं डोरी नए है बंधन
जब टूटेगा तार कहीं से
या छुटेगी पतवार कहीं से
हर कोने से कष्ट कहानी
छोड़ दे कोना कर मनमानी
चल मेरे संग साधू हो जा
क्षणभंगुर संसार है बेटा
साधू बाबा पूछे मुझसे
"मणिकर्णिका कभी गया तू"
मैं बोला
"उस तरफ मैं राह न पकडूँ
कवि हूँ मैं कविता करता
लाश चिता से जी डरता"
साधू झट से गुर्राया
मुर्ख तू लड़के
जिन्दा कब से काट रहा है
बोटी बोटी बाट रहा है
इज्जत पे आमादा है
हैवानों से ज्यादा है
मुर्दा ना तो बोल रहा
मुर्दा ना तो डोल रहा
जिन्दा जब से शैतान हुआ
घर घर में शमशान हुआ
जिन्दों से बच कर रह बेटा
मुर्दे की तो अंतिम शैय्या
देख जरा चुप चाप है लेटा
अब भी डरता तो भाग
भाग सके तो भाग
आखिर में सबको जल के
हो जाना है राख
भले सिंहासन बड़ा हो जितना
जाएगा तो कंधों पे
मणिकर्णिका का फल अंतिम है
कोई न बच पाया है
कोई न बच पाएगा
एक मधुर मुस्कान लगा ले
न हँसना है न चिल्लाना है
न तो मुझकों रोना है
मेरी दुनिया में कहीं नहीं ये
होठों पे मुस्कान लगा ले
चल दे मेरे पीछे पीछे
गर तुझको साधू होना है
: शशिप्रकाश सैनी
This is bang on the target, Shashi. Loved it.
ReplyDeleteधन्यवाद दिवाकर जी
DeleteKaash ye gyaan sabko samajh me aata
ReplyDeleteजी डॉक्टर साहिबा
Deleteऐसा होता तो दुनिया यूँ न होती
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....शशिप्रकाश सैनी जी
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