शिक्षक दिवस दोहे
ब्रम्हा
का धर रूप ये, श्रृष्टि सारी रच दे
विष्णु
बन के पालते, दूत हुए सच के
कक्षा
में जब पाप था, बढ़े जब दुर्व्यवहार
डमरू
इनका डोलता, शिव होके संहार
बीज
बढ़ा पौधा हुआ, अब होने को पेड़
कालेज
और नर्सरी, बरसों बांधे मेढ
बचपन
से आकार दे, पानी माटी खाद
पौधा
बने न ठूठ रे, बना रहे आबाद
बबूल
से ना पेड़ हो, बने रहे हम आम
बरसों
से है सीख दे, शिक्षक जगत तमाम
:
शशिप्रकाश सैनी
Awesome ,a great tribute to all the teachers :)
ReplyDeleteYou write from your heart :)
ReplyDeleteधन्यवाद ग़ज़ला जी
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