अंधेरा घिर आए
अंधेरा अंधेरा
अंधेरा घिर आए
चले चल वापस चल
कब से दिल ये कह रा है
मन सबसे ही गहरा है
अंधेरा अंधेरा
अंधेरा घिर आए
चले चल वापस चल
जिस जिस पे ना बस चले
उस पे केवल हँस चले
रोने की इच्छा नहीं
हम तो केवल हँस चले
अंधेरा अंधेरा
अंधेरा घिर आए
चले चल वापस चल
इतना ना खो जाइए
कुछ से कुछ हो जाइए
रात ऐसी हो चले
दिन से फिर छुपाना पड़े
अंधेरा अंधेरा
अंधेरा घिर आए
चले चल वापस चल
तुफा है कश्ती भी है
जंगल है बस्ती भी है
देखो सब कुछ है यही
मन से गहरा कुछ नहीं
अंधेरा अंधेरा
अंधेरा घिर आए
चले चल वापस चल
भूले भटके आए हम
घर को कैसे जाए हम
कोई है अब साथ ना
हाथों अब है हाथ ना
अंधेरा अंधेरा
अंधेरा घिर आए
चले चल वापस चल
: शशिप्रकाश सैनी
Beautiful thoughts and expressions in words here. Great work sir.
ReplyDeletebeautiful piece of art...
ReplyDeleteworth reading.
धन्यवाद गुंजन जी
DeleteGood poem,. Is it tufan or tufa ?
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