मै प्रेम अंधेरा
ये अंधेरा प्रेम का
बरसों बरस गहरा रहा
किस्मत भी न कह रही
कोई आ रहा कोई आ रहा
मै रहा उस मोड पे
बरसों बरस ये सोच कर
कोई धड़कने सुन ले मेरी
मेरी खामोशियाँ खामोश कर
पहर दोपहर शाम भी
मचलते दिल देखे तमाम जी
बाहों में बाहें
वो थे प्रेम तराने वाले
मालूम अब चल पड़ा था
कुछ और चाहती है दुनिया
न भाते दिल दिखाने वाले
मै प्रेम अंधेरा
वो रोशनी कब आएगी
नभ पे मेरे भी चाँद हो
चाँदनी बरसाए जी
: शशिप्रकाश सैनी
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