अपनी डोर संभालिए
नीली पीली और हरी
पेडों पे हैं, खेतो में
नज़र जहाँ जहाँ चली
पतंगों से दुनिया भरी
नीली पीली और हरी
जंग छिडेगी, छत छत पे
वो पतंग उडाए डट के
ये नज़र लड़ाए हट के
ध्यान न तेरा भटके
कही गिर न जाए कट के
न गगन मिला
न खेत
मुझको पूरा खेद
राह से थोड़ा भटके
अब पेड़ो पे हैं अटके
जो ध्यान जरा ये पाए
कोई पेंच सही लगाए
वक्त वक्त पे ढील ढील
है हवा चली उड़ने दे
ठीक से पकडो मांझा
डोर नहीं उलझेगी
गर गलती की न माना
तो लग जाए जुर्माना
धागे पे रखा ध्यान नहीं
अब उलझन का समाधान नहीं
ये टूटेगी बिखरेंगी
गांठें सब उभरेंगी
नभ हो जिसका सपना
गिर जाए तो लूट मचे
हाथों इतनी लग जाए
फिर ये ना उड़ पाए
अपनी डोर संभालिए
गर छूना हो आकाश
ध्यान हटेगा कट जाएगी
हाथों हाथों फट जाएगी
: शशिप्रकाश सैनी
//मेरा पहला काव्य संग्रह
सामर्थ्य
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sarthak bat kahi hai rachna ke maadhyam se ...!!
ReplyDeletesundar rachna shubhkamnayen ...!!
धन्यवाद अनुपमा जी
DeleteGreat imagery, Shashi. A poignant piece~
ReplyDeleteawesome one sir :)
ReplyDeleteYou painted this very well :D
ReplyDeleteधन्यवाद ग़ज़ला जी
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