मै ईमारत पुरानी सही


मै ईमारत पुरानी सही
मै ईट पत्थर का मकान
एक दौर था मुझ में बसती थी जान
थी खिड़किया थे रोशनदान


हर कोने में अरमान
बच्चो की किलकारियां
बुजुर्गो का ज्ञान
ऐसी थी ज़िन्दगी हमको भी था अभिमान
मै ईमारत पुरानी सही
मै ईट पत्थर का मकान


आज जर जर हूँ  और वीरान
हालात से परेशान
बस अब ईट पत्थर हूँ 
नहीं रहा मकान
मै ईमारत पुरानी
और बेजान

: शशिप्रकाश सैनी

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Comments

  1. बस अब ईट पत्थर हु
    नहीं रहा मकान
    मै ईमारत पुरानी
    और बेजान
    bahut hi touchy,gahan abhiyakti....

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