ये आदमी जिंदा नहीं
मेरी मौत का फरमान मुझ से
छुपा के ले गयी
और कह गयी लोगो से वो
ये आदमी जिंदा नहीं
खंजर-ऐ-घाव हैं
नासूर सा हुआ हैं दिल
पर अब भी नहीं मौत के काबिल
मेरी धडकनों को शोर-ए-गुल में
दबाए रह गयी
और कह गयी लोगो से वो
ये आदमी जिंदा नहीं
किये जिस से वार
मेरा दिल ही मेरे गुनाहगार
का हथियार था
जो हुआ कत्ल वो मेरा प्यार था
दिल धड़कता नहीं उसका
जैसे बची कोई भावना न हो
ऐ खुदा ज़िन्दगी में
ऐसे पत्थर से फिर सामना न हो
खुद मर गयी हैं वो
और कह गयी लोगो से वो
की मै जिंदा नहीं
: शशिप्रकाश सैनी
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