खोया था सम्मान
झेली हैं अवहेलना
झेला हैं अपमान
खोया था सम्मान
अपनी ही नजरो से गिरा ऐसा था इंसान
बरसे थे ताने
लगे कहर बरसाने
समय बड़ा अपनी गती से
मै बिखरा दूरगति से
कुछ न बदला मेरी मति से
यू लगा जो होता हैं
वो हो रहा हैं सहमती से
यूँ लगा ज़िन्दगी बोझ हैं
एक दिन का मरना ठीक
क्यों मरना रोज़ रोज़ हैं
हिम्मत टूटी विश्वास झूठा
क्यों इश्वर मुझसे ही रूठा
: शशिप्रकाश सैनी
kya baat Sashi ji..bahut umda
ReplyDeleteNice work, Shashibhai, even to my limited exposure to Hindi verse.
ReplyDeleteधन्यवाद सुभोरूप जी
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