मै मनचला नहीं
गर खुदा दुआ दे
तो यही चाहूँ
की मौसम-ऐ-इश्क की हर बहार में फुलू
कुछ उसकी हद में
तो कुछ तेरी मद में झूमू
हर रात एक नयी रात हो
और दिन एक नया बसेरा दे
मेरी मानो तो यही
एक अमृत निकला हैं
मंथन से इसके कुछ बूदे मुझे भी दे
ना जन्मो का ना उम्र भर का
गर खुदा कुछ देना ही हैं
थो रात भर का बसेरा दे
कुछ नया करने की चाह
आदमी से क्या-क्या कराती हैं
मुझे तो ये हर रात बरगलाती हैं
बस यही चाह हैं
मोहब्बत एक किराये का घर हो
जो मै रोज बदलता रहू
हर कलि मेरे नाम को जाने
हर गली मेरे काम को माने
गर खुदा दुआ देनी हैं
तो बस ये दे
गर एक बस छुठे थो दूसरी मिले
गर खुदा बुरा माने
थो तू मत बुरा माने
हज़ार टुकड़ो में दिल किया मैंने
दर्द सहता रहा
और प्यार बाटता रहा
: शशिप्रकाश सैनी
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