कब तक अंतर्मन को टालू

कब तक अंतर्मन को टालू
कब तक पाप मन में पालू

विद्रोह कर रही आत्मा
क्यों करते आदर्शो का खात्मा

पथ भूल तुम पथभ्रष्ट हुए
मुल से ही नष्ट हुए

हर पाप में प्रवीन
अधर्मो में उत्तीर्ण
चाल चलने में निपुण
बचे हैं बस अवगुण
इंसानियत में दरिद्र
नहीं रहा चरित्र

जाने कब से आत्मा को छल रहा
धर्म कर्म मेरा ही जल रहा
नसे जब थी खोखली
बुनियाद तब की हिली
कब तक घ्रिणा को झेलू 
कब तक आत्मा से खेलू
कब तक पाप ये संभालू
कब तक अंतर्मन को टालू

: शशिप्रकाश सैनी

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