जिंदगी तरकस में कोई तीर नया रख
जिंदगी तरकस में कोई तीर नया रख
दर्द पुराने तेरे घाव कर पाते नहीं
पीठ जख्मी मेरी सीना खाली रहा
बुजदिली खंजर की सीने से गुजर पाते नहीं
बेवफ़ाई तनहाई और मिली रुसवाई
आदत बिगड़ी यूँ इनसे और डर पाते नहीं
वफ़ा की दुनिया से मेरा रिश्ता नहीं कोई
हम उनकी नहीं वो हमारी खबर पाते नहीं
: शशिप्रकाश सैनी
Beautifully written, Shashiprakash. You have captured the pain and the pride of being vulnerable so well.
ReplyDeleteधन्यवाद सुभोरूप जी
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