हाँ पे हाँ ना हो सकी
खुले आम बताता
हूँ
नहीं मै शर्माता
हूँ
दिल रखता हूँ
धड़कन भी
रखता हूँ जज्बात
मै
कुछ समय की बात
है
कविता नहीं दिल
के हालात है
हर शब्द में
जज्बात है
किसी पे दिल आया
था
धडकनों ने भरमाया
था
नहीं दबा के रखा
सीने में
मैंने उसकी तरफ
बढ़ाया था
दिल अब की अजमाया
था
न कविता न दोहा न
गजल थी
दिल था बस दिल की
पहल थी
न तुकांत न बेबहर
ना बाबहर
मै शब्दों से
खेला नहीं इस पहर
सीधी सरल भाषा
में बात बढ़ाई थी
जो उसको समझ न आई
थी
हाँ पे हाँ ना हो
सकी
वो मेरी दुनिया
ना हो सकी
: शशिप्रकाश सैनी
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteधन्यवाद राजेन्द्र जी
DeleteLovely poem
ReplyDeleteTravel India
धन्यवाद विशाल जी
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