भांग हर गली कुचे लुटी है



हर गली कुचे में इंतजाम हुआ है
पर्दे नहीं है सरेआम हुआ है
भांग गई घोटी
हुई बोटी बोटी
दूधो मिलाई गई है
चीनी घुलाई गई है
कही सादगी से पिलाई गई
कही रईसो की मेवा मलाई गई


दामन उसका तार तार हुआ है
अब की देखिए क्या सरकार हुआ है
कभी आमो आम ने लुटी
कभी खासों खास ने
हवस में विलास में
छली गई गिलास में
कभी मदहोशी में
कभी होशोहवास में
भांग बटी है गिलास में


पलेट से जैसे ही गोलियां खतम हुई
सरदार बोल पुड़िया नई खोलिए
मेरी हवस न हजम हुई


पलेट से जैसे ही गोलियां खतम हुई
दुनिया भूली दर्द उसका
यादाश्त ज़माने की कफ़न हुई
कराह आँसू हर बात दफ़न हुई
हरकतों में हरकते ये आम हुई
अब की खुले आम हुई
हर गली कुचे में गोली है
गिलासो इन्तेजाम हुई


अपनी डालों पराई हुई टूटी है
मूक ज़माने की रही सहमति
मथनी से गई मथी
सिलबट्टे कुटी है
कांडलन घुटी है
भांग हर गली कुचे लुटी है


: शशिप्रकाश सैनी




Comments

  1. मार्मिक प्रस्तुतीकरण,आभार.

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    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी

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