यूँ तो मै लिख रहा हूँ अठारह साल से
यूँ तो मै लिख रहा हूँ अठारह साल से
कलम चली मेरी कभी हकीकत कभी ख्याल से
मुश्किल अल्फाज़ों से बचा के रखा
सीधी बात करू बचूं मै टेढ़ी चाल से
मेरी अपनी है कोई पराई नहीं कितना समझाऊँ
लोग अब भी चोट करते है सवाल से
जब दरिंदगी की हद हुई हद से भी बेहद हुई
खून खौला मेरा, कटाक्ष निकल आए उबाल से
खाई प्यार की पाटी कविताओं ने मेरी
क्या बताए हम गुजरे है किस हाल से
दिल से लगा के रखा, रखा बहुत पास इसे
लबो जब भी लगाया, लगे प्रियशी के गाल से
जब भी थरथराया दिल आँखों बहे आंसू हुए
हौसला बांधा है मेरा, बन गए है रुमाल से
नब्ज नहीं शब्द टटोलना “सैनी” के
शब्द न होंगे तो जान लेना भेट हो चुकी है काल से
: शशिप्रकाश सैनी
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prashansniye,ati-uttam
ReplyDeleteधन्यवाद सिफ़र जी
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