पत्थर हो जाती हैं
चेहरे से मुस्कान गई
न बोले न हँसती हैं
नैना ऐसे पथराए
जैसे वीरानी बस्ती हैं
छूने से पत्थर हो जाए
बात न माने मेरी
हाथ लकीरों से खेल
ये प्यार की हेराफेरी
नई नई ये बात नहीं
अक्सर हो जाती हैं
छूने से क्या हो जाता
पत्थर हो जाती हैं
चाहे कुछ हालात रहे
मेरे छूने से जज्बात जमे
रिश्तों से सब गर्माहट
फुर्र(छू) हो जाती हैं
नई नई ये बात नहीं
अक्सर हो जाती हैं
उससे बात बढ़ाऊ क्या
दिल के हालात बताऊ क्या
गर बोलू दो बोल कभी
तो पत्थर हो जाती है
नई नई ये बात नहीं
अक्सर हो जाती हैं
न कोई दिल तक आ पाए
हाथों इश्क फिसल जाए
धड़कन खो जाती है
रिश्ता सब मर जाता हैं
पत्थर हो जाती है
नई नई ये बात नहीं
अक्सर हो जाती हैं
बहुत ही सार्थक प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeletebadhiya shashi prakash jee
ReplyDeleteTravel India
beautiful, very well expressed.
ReplyDeletethodi confusion hai boss,iss kavita ka arth saaf nahin hai
ReplyDeleteधन्यवाद राजेंद्र जी ,विशाल जी,मिनाक्षी जी
ReplyDeleteसिफ़र कभी फुर्सत में बताऊंगा अर्थ