बांहों में तुम
शब्द मैं जुटाता रहा, भाव लापाया नहीं. तुम्हे महसूस करना, छूना तुम्हे, मेरी कल्पना से परे. दीवार, किवाड़, पर्दों में, तुम्हारा अक्श ढूंढा. दिल की कराह सुनी मैंने, आज फिर एक रात, तुम्हारे, बिना जी मैंने. और बर्दाश्त होता नहीं, पत्थर, कहने लगे हैं! लोग मुझे. मेरी धड़कने, तुम ले गई जब से. मैं अधुरा कवि, मांगता बस यहीं, अधरों पे मुस्कान, बांहों में तुम, और थोड़ी सी जिंदगी. : शशिप्रकाश सैनी //मेरा पहला काव्य संग्रह सामर्थ्य यहाँ Free ebook में उपलब्ध Click Here //