अम्मा के हाथ के सत्तू के पराठें



“कुकडूँ कु कुकडूँ कु” मुर्गे की बांग सुनते ही रिंकू की नींद टूटी, आंखे मलता हुआ बाहर निकला तो देखा कुहासा पड़ रहा हैं, रसोई में भागता हुआ गया जहाँ अम्मा खाना बना रही थी और बोला “अम्मा आज स्कूल नहीं जाऊंगा, देखो कितना कुहासा हैं” अम्मा नाराज हो के बोली “ रोज तेरे स्कूल न जाने के बहाने रहते हैं कभी कहता हैं पेट दर्द कभी कहता हैं ड्रेस गंदी हैं और आज कुहासा, मैं कुछ नहीं जानती स्कूल तो जाना ही पड़ेगा, जा नहा ले पिछवाड़े जाके” |


मुहं गिराए रिंकू पिछवाड़े आया तो देखा दादी झाडूं लगा रहीं हैं, दादी से बोला “ दादी देखो अम्मा कुहासे में भी स्कूल जाने को कहती हैं” दादी ने कहाँ “मैं पानी गर्म कर देती हूँ, नहा ले और चुपचाप चला जा आज चार दिन से तू स्कूल नहीं गया, बिना पढ़े लिखे बाबु साहब कैसे बनेगा, मुझे मोटर में कैसे घुमाएगा” 


जहाँ भी रिंकू की दाल न गली आखिर में उसे नहाना ही पड़ा, नाराज रिंकू बस्ता टांग स्कूल जाने को हुआ , तो अम्मा भागती आई और बोली “ बेटा नाराज क्यों होता हैं, ये ले नाश्ता कर ले आज मैंने तेरे लिए सत्तू के पराठे बनाए हैं, पसंद हैं न तुझे” रिंकू मुहं बनाता हुआ बोला “रोज वही पराठे मैंने कहा था न मुझे बरेड खानी हैं नाश्ते में, लालू रोज खाता हैं मुझे भी चाहिए” अम्मा पुचकारती हुई बोली “ अब की खा ले मैं कल शहर से मँगा के जरुर रखूंगी तेरे लिए बरेड, मेरा रिंकू किसी लालू से कम हैं क्या, चल खा ले पराठे” |


आज रिंकू बड़ा हो गया हैं महानगर में रहता हैं, अब कुहासा पड़े या बाढ़ आए वो किसी से जिद नहीं करता चुपचाप दफ्तर चल देता हैं, ब्रेड बटर का नाश्ता रोज ही करता हैं, पर उन सत्तू के पराठों के लिए तरसता रहता हैं जिन से वो बचपन में भागा करता था “अम्मा के हाथ के सत्तू के पराठें” |


: शशिप्रकाश सैनी

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