लकीरें मेरी चमकती नहीं हम क्या करे
लकीरें मेरी चमकती नहीं हम क्या करे
लड़ते हुए जिए या घुट घुट के जिया करे
लोग आएं फ़िक्र की बात ये समझा गए
मानलो जिद ना करो वो करो जो दुनिया करे
मैं भीड़ में न जाऊंगा भीड़ ना हो पाउँगा
हवा उड़ाएं साथ दे चाहें मुझे रुसवा करे
हिंदू हूँ सुना हैं कई जन्म मेरे पास जीने को
सुनी सुनाई बताओं कितना हम भरोसा करे
जो होगा यहीं होगा कहीं और अब होगा नहीं “सैनी”
रगड़ माथा चमक निकले लहू निकले तो क्या करे
: शशिप्रकाश सैनी
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