अच्छा चाय वाला लाना हैं
दिल्ली की भट्टी सूनी
टूट रही फूट रही
धूल से जूझ रही
नौ साल में मकड़ियों ने जाला कर दिया
स्वर्णिम भारत का स्वप्न काला कर दिया
कभी दूध में मिलावट
कभी चीनी में गबन
ग्राहकों से अनबन
अच्छी भली दुकान पे ताला कर दिया
स्वर्णिम भारत का स्वप्न काला कर दिया
मालिक जनता ने
नौकर गलत रखा
स्वाद बेईमानी का चखा
दिमक ऐसा लगा दिवाला कर दिया
स्वर्णिम भारत का स्वप्न काला कर दिया
अब की सही चाय वाला लाए
जो दिमक न लगाए
जिसे मालूम हो टूटी दुकान
फिर से कैसे चलानी हैं
एक अच्छी चाय में
कितना लगता दूध, कितना लगता पानी है
भट्टी को कितनी आंच पे लाना है
पत्ती को कितना खौलाना है
जिसे मतलब न हो
ग्राहक पंडित है या मौलाना है
मकसद बस अच्छी चाय पिलाना है
उसकी चाय से हौसला आए
थकान जाए
ऐसा चाय वाला लाना है
जब भी चाय पीए
ये याद रखे अब की कहा बटन दबाना है
हमें एक सच्चा अच्छा चाय वाला लाना है
: शशिप्रकाश सैनी
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