बादल में चाँद देखा, घुंघट में तुम



बादल में चाँद देखा, घुंघट में तुम
किसीकी हम राह जोहें किसकों भुलाएं


वो भी छुपाएँ बाते, आधा अधूरा कभी पूरा न आएं
तुम भी जब आएं बस बतिया बनाएँ
किसीकी हम राह जोहें किसकों भुलाएं


गंगा के तीरे जब भी मिलने हम जाएँ
तुम भी न छूने दो, वो भी लजाएँ
किसीकी हम राह जोहें किसकों भुलाएं


तुम ने भी वादें किए, उसने भी वादें किए
वादें मगर किसने कितना निभाएं
किसीकी हम राह जोहें किसकों भुलाएं



: शशिप्रकाश सैनी 


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