शाम होने को हैं
शाम होने को हैं
तुम कहाँ रह गई
रह गई तुम कहाँ
तुम कहाँ रह गई,
अकेला मैं बिलकुल
सहारा नहीं,
रास्ते हैं वही
ऊजाला नहीं,
शाम होने को हैं
तुम कहाँ रह गई
हम हम थे, मैं में
गुजारा नहीं,
अब मिलना मुझी से
गवारा नहीं,
शाम होने को हैं
तुम कहाँ रह गई
दर्द तेरा ही
तेरा
हमारा नहीं ?
रूठना भी ये कैसा
पुकारा नहीं,
शाम होने को हैं
तुम कहाँ रह गई
छोडो ये तेवर
ये नाराजगी
आओ ये किस्सा
बढ़ाए वहा से
यादे हमारी जहाँ
रह गई
: शशिप्रकाश सैनी
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