कुहुक बोले ना
मै कुहू बोलू तो भी कुकू बोले ना दिल उसका कभी कुहुक बोले ना दर पे रहे जिसके इंतज़ार में बरसों किवाड़ खोले ना कुहुक बोले ना मुझे पड़ाव की जिंदगी नहीं मंजिल की आश थी वो पड़ावो की रानी थी उसे बस रात बितानी थी हां पे हां ना हो सकी ना पे ये इतराए रिश्ता पैसो तोलती पैसा बरसेगा जहा लार वही टपकाए कुहू कुहू करते रहे काक को कोयल समझ बैठे जिसकी बोली काव थी वो कुहुक बोले भी कैसे : शशिप्रकाश सैनी