न मंदिर का न मस्जिद का



न मंदिर का न मस्जिद का
ये झगडा हैं सिर्फ जीद का
मेरा इश्वर हैं वो
तो किसी का अल्लाह भी हैं 
तो कही ईशा भी हैं 
जब अपनों के बने दुश्मन अपने
तो कैसे सजाए खुशहाली के सपने
जब बहाता हैं खून भाई भाई का
तब बच्चो की तरह रोता हैं 
मेरा इश्वर तो उसका अल्लाह हैं  वो
न खून की गंगा
 न नफ़रत का मदीना
अगर यही हैं जीना तो नहीं हैं जीना
अपनी औलाद आपस में लड़ मरे
किस बाप को ये अच्छा लगे
न मंदिर का न मस्जिद का
बस प्यार का भूखा हैं वो

: शशिप्रकाश सैनी


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