खुद से कितना दूर हुआ


रक्त प्रवाह हो रहा अवरुद्ध
षड़यंत्र रचता खुद के विरुद्ध
घात लगा के बैठा
आत्मा पे कब आघात करू
आदर्शो पर अपने ही कब वज्रपथ करू
दर्द मेरे हृदय ने जाने कब तक सहा
मै खुद पे कितना क्रूर रहा
खुद से कितना दूर रहा

आवाज नहीं पहुची
साजिश थी सोची समझी
कर्म पे पहरे लगा
अधर्म नशों में बहाने लगा
दिल से दिमाग का संपर्क टुटा
जाल बुने मन ने झूठे से झूठा.
अर्थ के आभाव में सामर्थ्य छूटा
जाने कब तक मेरी आत्मा का लहू बहा
मै खुद से कितना निष्ठुर रहा
खुद से कितना दूर रहा

धर्म हो गया खोखला
मै अंतर्मन से कितना खेला
मै क्यों फैला रहा अद्रशो में हल-चल
क्यों मै पथभ्रष्ट हुआ
क्यों मै समूल नष्ट हुआ
सब जान मन रहा अनजान क्यों
आत्मा ने नहीं खोजा समाधान क्यों
हर पल कितनी मौत मारा
मै खुद से कितना चुराए हुआ
खुद से कितना दूर हुआ

-शशिप्रकाश सैनी


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