पिछवाड़े की कटीली तार






न तो मै तलवार हूँ 
न नहीं मै कोई दूसरा हथियार हूँ
मै वहीं पिछवाड़े की
सडी गली जंग लगी बाड़ हूँ 

मै किसको बांधती नहीं
नहीं ही छिनती हूँ किसकी आज़ादी
मै रखती हूँ इस पार आबादी
की उस पार छुपी हो सकती हैं बर्बादी

कई तुफानो में मै खड़ा रहा
जीद से ही सही पर वहीं अड़ा रहा
कभी थी धारदार अब धार हुई बेकार
मै वही पिछवाड़े की कटीली तार

मै सिर्फ रोकती नहीं सिर्फ टोकती नहीं 
आँगन खुशियों से रहे गुलज़ार
इसलिए हूँ मै पहरेदार
मै वैसे ही हूँ जैसे घर में संस्कार
पुरानी हूँ कठोर हूँ  पर नहीं हूँ  मै बेकार
मै वहीं पिछवाड़े की जंग वाली तार


: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. मै वैसे ही हु जैसे घर में संस्कार
    पुरानी हु कठोर हु पर नहीं हु मै बेकार
    gahan baat kah di aapne chand lineo me...

    ReplyDelete

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