काश हम भी किसीके वलेंटाइन होते
रात हम भी किसीके
सपनो में सोते
किसीकी बाहों में हम भी खोते
किसीके इश्क के समंदर में
हम भी लागाते गोते
काश हम भी किसीके वलेंटाइन होते
तेरी आँखों में अपने निशा भर देते
तेरे लबों को अपना कर देते
तू हँसती तो
हम भी हँसते
तू रोती तो
हम भी रो देते
काश हम ही तेरे वलेंटाइन होते
वो हम में बसते
हम उनकी सांसो में
वो धड़कते हमारे दिल में
हम उनकी आँखों में
हम उनकी जिंदगी होते
वो हमारी बंदगी होती
काश हम भी किसीके वलेंटाइन होते
उनके ख्वाबा हमारे
और उनके अरमान हम होते
हम उनकी आरजू होते
वो हमारी आबरू होती
वो लैला
हम भी मजनू होते
काश हम भी किसीके वलेंटाइन होते
:शशिप्रकाश सैनी
वाह!बहुत खूब रूमानियत से भरी रचना।
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