थोडा मैं पागल हूँ


हमेशा समझदारी का ढोंग हमसे नहीं होता 
थोडा मैं पागल हूँ, ज्यादा गम नहीं ढोता


वो समझदारी ही क्या 
जो घर बाँट दे 
दर बाँट दे 
जमीं, पर्वत, लहू बाँट दे 
बाँटते बाँटते, हम हो गए इतने छोटे 
गाडियों की टक्कर पे तमंचे निकले 
समझदारी बाँटते बाँटते, पूरा शहर बाँट दे 


कुछ हरकते बचकानी भी कर ले 
बेवजह हंस ले, बेवजह रो ले 
कभी पागलपंती में शामिल हो के देखा जाये 
पागल होना इतना बुरा नहीं होता 
मेरी हरकतों पे हंसती हैं दुनिया 
तेरी तरह आंसुओ का सिलसिला नहीं होता 


: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. कल 13/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  3. बहुत खूब...
    सुन्दर सोंच आपकी...
    अति सुन्दर रचना.....
    :-)

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  4. बहुत बढ़िया व शानदार कृति , शशि भाई
    नया प्रकाशन --: जानिये क्या है "बमिताल"?

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  5. कुछ नया होगा तो जीत होगी
    हार से तो अपना रिश्ता पुराना हैं |
    ...हार है तभी तो जीत का अस्तित्व है ...कभी न कभी जीत अपने पाले भी आती हैं ..
    बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना

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  6. अगर समझदारी ऐसी है तो पागल हो जाना ही ठीक है ...
    भाव भरी रचना ...

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