इस दीपावली, एक दिया और
This post has been published by me as a part of the Blog-a-Ton 43; the forty-third edition of the online marathon of Bloggers; where we decide and we write. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton. The theme for the month is "LIGHT"
घर अपने
किस कोने में अँधेरा है
करे थोड़ा गौर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया रोटी का
जहाँ अँधेरा भूख है
व्यवस्था अब तक मूक है
पकवानों से अपने, बढ़ाए एक कौर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया लाठी का
जब तक ये पेड़ थे घने, पाला उन्हें
आज ठुठ हुए, इन्हें ही काट दिया
बूढ़े माँ बाप का, नहीं कोई ठौर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया दुलार का
कोख में न मारे
उसके भी सपने, उसके भी हक़
उसकी भी जिंदगी सवाँरे
बेटा, बेटी का भेद, न पाला करे
हर बच्चा दिया है
पूरा मौका दे, दिया ऐसा जले
दुनिया में उजाला करे
बुराइयाँ पुरानीं हैं
लगाएं पूरा जोर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया किताबो का
अँधेरा चाय की दुकान पे
मिठाई और पकवान पे
आपके पसंदीदा रेस्टुरेंट पे
अँधेरा जूठे बर्तनों पे
अँधेरा सड़क किनारें खिलौनों में
टाफियों और बिस्कुटों में
आपके हर शौक पे
एक बचपन जल रहा है
आग बाल मजदूरी की
न जाने कितने बचपन निगल रहा हैं
अपने उजाले से थोड़ा निकले
उस अँधेरे पे गौर करे
किताबे उस ओर करे
जिन कानो के परदे मोटे हैं
उन्हें दे बड़ा शोर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया ताकत का
एक दिया इज्जत का
एक दिया सम्मान का
हर कोने में जलाएं
जहाँ अँधेरा है
अँधेरा है दुराचार का
अँधेरा है व्यभिचार का
अँधेरा दरिंदगी का
अँधेरा पुरषत्व का
ढोल पीटना बंद करे
उजाला बराबरी का लाएं
रौशनी यहाँ भी बढाएं
अबला होना अँधेरा है
सबला हो जाएं
एक दिया यहाँ भी जलाएं
अपनी लकीरें, अपने हाथ
दुसरों की दया पे नहीं
बने खुद के शिरमौर
इस दीपावली
एक दिया और
: शशिप्रकाश सैनी
किस कोने में अँधेरा है
करे थोड़ा गौर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया रोटी का
जहाँ अँधेरा भूख है
व्यवस्था अब तक मूक है
पकवानों से अपने, बढ़ाए एक कौर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया लाठी का
जब तक ये पेड़ थे घने, पाला उन्हें
आज ठुठ हुए, इन्हें ही काट दिया
बूढ़े माँ बाप का, नहीं कोई ठौर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया दुलार का
कोख में न मारे
उसके भी सपने, उसके भी हक़
उसकी भी जिंदगी सवाँरे
बेटा, बेटी का भेद, न पाला करे
हर बच्चा दिया है
पूरा मौका दे, दिया ऐसा जले
दुनिया में उजाला करे
बुराइयाँ पुरानीं हैं
लगाएं पूरा जोर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया किताबो का
अँधेरा चाय की दुकान पे
मिठाई और पकवान पे
आपके पसंदीदा रेस्टुरेंट पे
अँधेरा जूठे बर्तनों पे
अँधेरा सड़क किनारें खिलौनों में
टाफियों और बिस्कुटों में
आपके हर शौक पे
एक बचपन जल रहा है
आग बाल मजदूरी की
न जाने कितने बचपन निगल रहा हैं
अपने उजाले से थोड़ा निकले
उस अँधेरे पे गौर करे
किताबे उस ओर करे
जिन कानो के परदे मोटे हैं
उन्हें दे बड़ा शोर
इस दीपावली
एक दिया और
एक दिया ताकत का
एक दिया इज्जत का
एक दिया सम्मान का
हर कोने में जलाएं
जहाँ अँधेरा है
अँधेरा है दुराचार का
अँधेरा है व्यभिचार का
अँधेरा दरिंदगी का
अँधेरा पुरषत्व का
ढोल पीटना बंद करे
उजाला बराबरी का लाएं
रौशनी यहाँ भी बढाएं
अबला होना अँधेरा है
सबला हो जाएं
एक दिया यहाँ भी जलाएं
अपनी लकीरें, अपने हाथ
दुसरों की दया पे नहीं
बने खुद के शिरमौर
इस दीपावली
एक दिया और
: शशिप्रकाश सैनी
The fellow Blog-a-Tonics who took part in this Blog-a-Ton and links to their respective posts can be checked here. To be part of the next edition, visit and start following Blog-a-Ton. Participation Count: 13
Good read. The structure could've been a bit better. But nice message overall.. :)
ReplyDeleteधन्यवाद सिद जी
DeleteA lovely message, Shashi ji, to share a light where there is darkness, where there is different kinds of darkness as well. I liked the poem very much :)
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार विनय जी
Deleteक्या कहें, शशि जी.... पूरा पढ़के एक शब्द भी नही बोल पा रही हूँ | बस, यही सोच बच जाती है कि अगर हम सब एक-एक दिया जलायें तो दुनिया भर में रोशनी फैल जाएगी..... बस कोशिश बाकी है | आपकी यह कविता मन को छू गई, संदेश की गहराई और रचन की सुंदरता से |
ReplyDeleteआपको कविता पसंद आई दिल गदगद हो उठा श्रीजा जी
Deleteमैंने अपने हिस्से का दिया जलाया है और हर दीपवाली वो दिया जलने का निश्चय भी किया हैं
मेरा मतलब 'रचना' की सुंदरता |
ReplyDeleteVery beautiful poetry and nice penned the msg
ReplyDeleteur so right! darkness is not just absence of light, it can mean so many other things as well.....beautiful poetry!
ReplyDeleteसराहना हेतु आभार
DeleteThought provoking!
ReplyDeleteधन्यवाद आतिवास
Deleteआपकी कविता कोक के विज्ञापन कि याद दिलाता है परन्तु "LIGHT" शब्द का प्रयोग मुझे पूरी रचना में कहीं नज़र नहीं आया।
ReplyDeleteध्यान से पढ़ते तो शायद नजर आता
Deleteवैसे रौशनी भी और उजाला भी Light ही हैं
"उजाला बराबरी का लाएं
Deleteरौशनी यहाँ भी बढाएं"
beautiful poetry! Saini ji
ReplyDeleteधन्यवाद संजय भाई
Delete