मुझे पहचानेगा कौन
मैं मैं ही रहूँ वही अच्छा
कोई और हो जाऊं
मुझे पहचानेगा कौन
भीड़ न भाए न भाए आपाधापी
धडकनों की सुनने के लिए
अच्छा है रहना मौन
दिलचस्पी पैसो में, इंसानों में नहीं
ऐसा न हो साथ मेरे
भावनाएं कही रह जाए न गौण
आदर्श हो रहे गौण
चित्त अब भी है मौन
मशीनों में मशीन हो जाऊं
मुझे पहचानेगा कौन
: शशिप्रकाश सैनी
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आपको पढना अच्छा लगा .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (15.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज जी
Deleteअति सुंदर कविता । और भी लिखें ऐसा ही जो आकर्षित करता रहे।
ReplyDeleteधन्यवाद गुलाब चंद जी
Deleteवाह ,बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता . बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद मदन जी
Deleteदिलचस्पी पैसो में, इंसानों में नहीं
ReplyDeleteऐसा न हो साथ मेरे
भावनाएं कही रह जाए न गौण
a truth .nice
धन्यवाद शालिनी जी
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