किस्मत चाहूँ थोड़ी सी
ऐ हवा जरा तू साथ निभा
फिर तेजी मेरी देखती जा
आज जमी कल नभ छुलू
कभी यहां कभी वहां उडू
आज कदम दो कदम बढ़ाऊ
कल रफ्तार पूरी हो जाऊँ
नामुमकिन कोई शब्द नहीं
बस मुश्किल थोड़ी ज्यादा हैं
किस्मत चाहूँ थोड़ी सी
मेरा मेहनत का इरादा हैं
आपकी तो हर बात में वही है..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना...
:-)
सराहना हेतु आभार संजय जी
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