घर चिडीयाघर हो गया
घर चिडीयाघर हो गया
अतिथि आने का ये असर हो गया
कोई बन्दर हुआ कोई मगर हो गया
दर्द पे मेरे
क्यों इतना बेखबर हो गया
मुझे मलहम की आश
तू जहर हो गया
गेस्ट रूम बन मेरा कमरा गया
घर में ही अपने मै बेघर हो गया
पकवान पे पकवान
हमे तो न खिलाया कभी ऐसा सामान
जहाँ दाल रोटी नदारद थे
वहा पुलाव हैं
सिक्का अपना ज़माने के लिए
बटुआ मेरा झकझोरा गया
आँखों में आंसु नहीं
दिल रोता रहा
मै तरबतर हो गया
सांप नेवले गिरगिट हैं
बच्चे इनके
पुरे घर का कबाड़ किया
क्या नहीं जिसे दो फाड़ किया
ये भी सह लेते हम जुल्मों सितम
टूर गाइड समझा हमे
कार से सैर सपाटा
गरीबी में गिला हुआ आटा
अब आप ही बताएं
इस महंगाई में
कोई आप का पेट्रोल जला दे
इससे तो अच्छा जहन्नुम ही न दिखा दे
घर चिडीयाघर हो गया
दर्द इतना बढ़ा की हमसफ़र हो गया
घर चिडीयाघर से
जंगल हो न जाए
मेहमान खब्बू पहालवान
महंगाई दे चोट
ये दे पटखनी
जीवन में कही
दंगल हो न जाए
हे भगवान
मेहमान से
बचा मेरी जान
मंहगाई में जीना नहीं आसान
कोई दे बूटी दे कोई समाधान
: शशिप्रकाश सैनी
:-)
ReplyDeleteबढ़िया....
अनु
धन्यवाद अनु जी
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