दुःख के साथी हम


बेमौसम बरसात भिगाए 
दुःख के साथी हम
छाता अपना खोल न पाए 
दुःख के साथी हम
कमरा बीस घर था अपना 
रोजी का सब टुटा सपना 
दुःख के साथी हम

पीड़ा सर से पार हुई 
तब सुख की बौछार हुई 
आँखों के आंसू है गायब 
होठो पे मुस्कान भरी 
सुन कर तेरी जीत कहानी 
ख़ुशी बहोत इस बार हुई 

तुम सुख में कदम बढाओ 
मै भी वादा करता हूँ 
थे दुःख के साथी हम 
सुख में भी साथ निभाऊंगा 
रोजी मै भी ढूढ़ रहा हूँ 
नील गगन पे छाऊंगा 
खुशखबरी मै भी ले के आऊंगा 

दुःख के साथी हम 
सुख में गाथा नयी रचेंगे
मिल कर जश्न मनाएँगे
जब भी काशी जाएंगे 

: शशिप्रकाश सैनी

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