एक टोकरी सूरज



रात टल चली है
की दिन हो आया
एक टोकरी सूरज
दूजे में चाँद छुपाया

तारे सारे बिन बिन डाले
बिन डाले आकाश
स्लेट अपनी साफ यूँ करता 
नई सुबह नई आश
काले से हुआ लाल
लाल हुआ नीला
क्या चमत्कार दिखलाया


एक टोकरी सूरज
दूजे में चाँद छुपाया


होने को क्या हो जाए
समय पे ना ये आए
सुबह नहीं ये लाए
कैसे हम जग पाए
जग त्राहि त्राहि गाए
भूले से भटके से
जब टोकर में कुछ न लाया


एक टोकरी सूरज
दूजे में चाँद छुपाया


चिडियों की चहक भरी
फूलों की महक भरी
टोकर का ढक्कन खोला
तो क्या क्या है निकला
एक इतनी सी टोकर में
क्या क्या ये लाया
कितना कुछ समाया


एक टोकरी सूरज
दूजे में चाँद छुपाया


: शशिप्रकाश सैनी


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Comments

  1. That an allegory yo have used here, ek tokri Suraj,

    beautiful poem!

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  2. Wish you the very best in your poetry adventures ...

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    Replies
    1. धन्यवाद फ़िरोज़ जी

      Delete

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